काले कर्मचारियों के काल के कमान जैसी।
जुग की जबान रामबाण तेरी बानी है।।
केते-केते कोटि पाप पाखण्डों के काटिबे को।
तेरी बानी तेग ताको तेजदार पानी है।।
बानी महारानी हिंदी गंदी थी मनाती ताको।
तूने ही पिछानी तेरे स्नेह ते सोहानी है।।
अविद्या असत असुरन के बिदारिबे को।
तेरी वज्र गर्जना सी बानी में भवानी है।।२१।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई