“श्रेय-प्रेय”
प्रेय ससीम तू जी, श्रेय असीम तू जी।
रोटी कपड़ा मकान, प्रेय बस तीन तू जी।। टेक।।
सूक्ष्मतम से महानतम।
ब्रह्म झीन-झीन जी।। 1।।
सौ हाथों इकट्ठा कर।
हजारों हाथ बांट अदीन तू जी।। 2।।
प्रभु गुण ऊँचाइयां, ऊँचाइयां गहराइयां।
स्वाधीन जी तू स्वाधीन जी।। 3।।
सत-मित-भुक्, सत अमित पढ़।
चित्त दिव्यलीन जी।। 4 ।।