संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ (६) द्वितीया विभक्तिः (३) (द्विकर्मक धातुएं)
१. दुह्
अजापालः अजां दुग्धं दोग्धि = गड़रिया बकरी का दूध दुहता है।
गां दुग्धं अधुक्षत् गोपः = गोपालक ने गाय का दूध दुहा।
वेत्ता शास्त्रं सारं दुह्यात् = विद्वान् शास्त्र से सार निकाले।
अग्निवाय्वादित्याङ्गिराः ईश्वरं वेदान् दुदुहुः = अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा ने ईश्वर से वेदों को प्राप्त किया।
भ्रष्टाचारिणः शासकाः प्रजां धनं धोक्ष्यन्ति = भ्रष्टाचारी शासक प्रजा के धन का दोहन (शोषण) करेंगे।
ऐश्वर्यप्रियाः पृथिवीं रत्नानि दोग्धारः = ऐय्याश लोग धरती से रत्नों को निकालेंगे।
रुग्णां गां दुग्धं मा दोग्धु = बीमार गाय का दूध मत निकालो।
२. याच्
सः सर्वकारं भूमिं याचति = वह सरकार से भूमि मांगता है।
अहं मित्रं लक्षरुप्यकाणि अयाचिषम् = मैंने मित्र से एक लाख रुपए मांगे।
पीडिता प्रजा दयालुं दयां याचिष्यति = दुःखी प्रजा दयालु ईश्वर से दया मांगेगी।
दुःखिणः न्यायालयं न्यायं याचेयुः = दुःखी लोग न्यायालय से न्याय की मांग करें।
सर्वदं प्रभुं किं याचे ? = सबकुछ के दाता ईश्वर से मैं क्या मांगूं ?
ईश्वरं मेधां याचतु = ईश्वर से मेधाबुद्धि की याचना करो।
ययातिः पुत्रान् यौवनं ययाच = ययाति ने पुत्रों से यौवन मांगा।
३. भिक्ष
पुरा ब्रह्मचारिणः गृहस्थं भिक्षां याचते स्म = प्राचीनकाल में ब्रह्मचारी गृहस्थियों से भिक्षा मांगते थे।
वधूः श्वश्रूं दयां अभिक्षिष्ट = बहू ने सास से दया की भीख मांगी।
कौत्सः दिलीपं धनं बिभिक्षे = कौत्स ने दिलीप से धन मांगा।
भिक्षुकः यात्रिणं रुप्यकं बिक्षिष्यते = भिखारी यात्रियों से रुपए की भीख मांगेगा।
संन्यासी सम्पन्नान् भिक्षां भिक्षेत् = संन्यासी सम्पन्न लोगों से भिक्षा मांगे।
विदुषः परामर्शं भिक्षताम् = विद्वानों से सलाह मांगो।
४. पच्
त्वं गोधूमान् संयावं पचसि = तू गेहूं का हलुआ पका रहा / रही है।
युवां गृञ्जनानि संयावं पचतम् = तुम दोनों गाजर का हलुआ पकाओ।
यूयम् अलाबूं संयावम् अपाक्त = तुम सब ने लौकी का हलुआ पकाया।
अहं मुद्गान् संयावं पक्ष्यामि = मैं मूंग का हलुआ पकाऊंगा / पकाऊंगी।
आवां चणकचूर्णं संयावं पचेव = हम दोनों को बेसन का हलुआ पकाना चाहिए।
वयं कटिजान् पायसं पक्तास्मः = हम सब मक्के की खीर पकाएंगे।
सा पीयूषं पैयूषम् अपचत् = उस लड़की ने सद्यः ब्याही गाय के दूध से खीस पकाया।
ते दुग्धं किलाटं पचेते = वे दोनों लड़कियां दूध से खोया बना रहीं हैं।
ताः आमलकानि मिष्टपाकं पचन्ताम् = वे सब महिलाएं आंवले का मुरब्बा बनाएं।
एषा चणकचूर्णं चित्रापूपान् पक्ष्यते = यह बालिका बेसन के चीले पकाएगी।
एते गोधूमचूणम् अङ्गारकर्कटीः पचेयाताम् = ये दोनों बालिकाएं गेहूं के आटे की बाटियां पकाएं।
एताः तण्डुलचूर्णं पर्पटीः अपचन्त = इन सब बालिकाओं ने चावल के आटे के पापड़ बनाए।
५. दण्ड
मनुः चौरं हस्तच्छेदं दण्डयति = मनुराजा चोर के हाथ काटने का दण्ड देता है।
यत्र प्राकृतं जनं रुप्यकं दण्डयेत् राजानं तत्र सहस्रगुणं दण्डयेत् = जिस अपराध के लिए प्रजा को एक रुपए से दण्डित किया जाए उसी अपराध के लिए राजा को हजारगुणा दण्ड प्रावधान होवे।
व्यभिचारिणीं श्वखादनं दण्डयतु = व्यभिचारिणी महिला को कुत्तों से नुचवाओ।
व्यभिचारिणं तप्तायसशयनं दण्डयिष्यति = (राजा) व्यभिचारी पुरुष को गरम लोहे के पलंग पर सुलाके मारने का दण्ड देगा।
देशद्रोहिणं सर्ववेदसम् अदण्डयत् = (न्यायाधीश ने) देशद्रोही का सर्वस्व छीन लेने का दण्ड दिया।
गुरुद्रोहिणं मृत्युदण्डम् अदिदण्डत् = गुरुद्रोही को मृत्युदण्ड दिया।
६. रुध्
गोशालिकः गाः गोशालाम् अवरुणद्धि = गऊसेवक गायों को गोशाला में रोकता है।
अश्वशालिकः अश्वान् मदुराम् अवारुणत् = घुड़साल-सेवक घोड़ों को घुडसाल में रोकता है।
सैनिकाः शत्रून् सीमाम् अरुधन् = सैनिकों ने शत्रुओं को सीमा पर रोक दिया।
रक्षकभटाः अपहारकं विमानपत्तनं रुन्ध्युः = पुलिस अपहरणकर्ता को हवाईअड्डे पर रोक देवे।
वायुः वृष्टिं अन्तरिक्षम् अवरोत्स्यति = हवा का बहाव बारिश को आकाश में रोक देगा।
७. प्रच्छ्
पिता पुत्रं प्रश्नं पृच्छति = पिता पुत्र से प्रश्न करता है।
माला मोहनं क्षेमकुशलं अप्राक्षीत् = माला ने मोहन से कुशल-मंगल पूछा।
गुरुं धर्मं पृच्छेत् = गुरु से धर्म के विषय में पूछे।
विवाहकाङ्क्षिणी सुता मातरं गृहस्थधर्मं प्रक्ष्यति = विवाह की इच्छुक पुत्री माता से गृहस्थ के कर्त्तव्यों को पूछेगी।
पान्थं पन्थानं पृच्छतु = पथिक से रास्ता पूछो।
८. चि
पादपान् पुष्पाणि चिनोति = (माली) पौधों से फूलों को चुनता है।
होलिकापर्वी किंशुकं किंशुकानि अचैषीत् = होली मनानेवाले ने ढाक से टेसू को चुना था।
मञ्जुला मल्लिकां मञ्जुलानि कुसुमानि चेष्यति = मंजुला मल्लिका के सुन्दर फूलों को तोड़ेगी।
पाटलपादपं पाटलानि प्रसूनानि मा चिनोतु = गुलाब के पौधों से गुलाब मत तोड़ो।
९. ब्रू
धर्मभीरुः न्यायाधीशं सत्यं ब्रवीति = धार्मिक (धर्म से डरनेवाला) न्यायाधीश को सत्य कहता है।
दयानन्दः जनान् सत्यं अवोचत् = दयानन्द ने लोगों को सत्य बात बताई।
परस्परं सत्यं ब्रूयात् = एक दूजे के साथ सदा सत्य बोलना चाहिए।
मा ब्रवीतु अनृतं कञ्चन = किसी के साथ झूठ न बोले।
सत्यवादी सर्वान् सत्यमेव वक्ष्यति = सत्यवादी सभी से सत्य ही बोलेगा।
१०. शास्
पाणिनिः अन्तेवासिनः व्याकरणं अनुशास्ति = पाणिनि मुनि विद्यार्थियों को व्याकरण पढ़ाते हैं।
मनुः सर्वान् धर्मं अशिषत् = मनु जी ने सभी को धर्म का उपदेश किया।
ब्रह्मविदः ऋषीन् उपनिषदं शशास = ब्रह्मवेत्ताओं ने ऋषियों को उपनिषद-विद्या का उपदेश दिया।
याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीम् अमृतत्त्वम् अशात् = याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी को अमरत्व का उपदेश किया।
अध्यापकाः शिष्यान् सदाचारं शिष्युः = अध्यापक शिष्यों को सदाचार का उपदेश करें।
पुरोहितः यजमानं संस्कारान् शास्तु = पुरोहित यजमान को संस्कारों का उपदेश करे।
११. जि
दुर्योधनः पाण्डवान् द्रौपदीं जिगाय = दुर्योधन ने पाण्डवों से द्रौपदी को जीता।
नृपः शत्रून् धनं जयति = राजा शत्रु से धन को जीतता है।
मित्रं सखायं समयं जेष्यति = मित्र अपने मित्र से शर्त जीत जाएगा।
१२. मथ्
भ्रातृव्या दधि नवनीतं मथ्नाति = भतीजी दही बिलोके मक्खन निकालती है।
ऋषयः वेदान् यज्ञं ममाथुः = ऋषियों ने वेद से यज्ञ को मथा।
क्रान्तदर्शिणः प्रकृतिं नवीनान् आविष्कारान् अमथिषुः = क्रान्तदर्र्शियों ने प्रकृति का मन्थन कर नयी-नयी खोजें कीं।
वैयाकरणा महान्तं शब्दोघं व्याकरणं अमथन् = वैयाकरणों ने विशाल शब्दराशि से व्याकरण को मथा।
१३. मुष्
चौरः प्रतिवेशिनं धनं मुष्णाति = चोर पडोसी के धन को चुराता है।
शाटिकाः स्त्रिसि्त्रयः बुद्धिं मोषिष्यति = साड़ियां महिलाओं की मति को चुरा ले जाएंगी।
प्रिया प्रियं मनः अमोषीत् = प्रिया ने प्रिय के मन को चुरा लिया।
स्नातकः ग्रन्थान् उद्धरणानि / सन्दर्भान् अमुष्णात् = स्नातक ने ग्रन्थों से सन्दर्भों को चुराया।
१४. नी
गुरुः छात्रं शास्त्रं स्त्रं नयति = गुरु छात्र को शास्त्र स्त्र में ले जाता है (शास्त्र स्त्र में कुशल करता है)।
गाः व्रजं नेष्यति = गायों को गोशाला में ले जाएगा।
वटुः जनकं हाटकं अनैषीत् = बच्चा पिता को दुकान पर ले गया।
रेलयानं यात्रिणः अभीष्टस्थानं नयेत् = रेलगाड़ी यात्रियों को इच्छित स्थान पर पहुंचाए।
१५. हृ
रावणः सीतां लङ्कां जहार = रावण सीता को लंका में ले गया।
पिष्टिका मां हस्तशकटं हरिष्यति = कचौरी मुझे ठेले पर ले जाएगी।
श्येनः शशकं आकाशं अहार्षीत् = बाज खरगोश को आकाश में ले गया।
त्रिकोणिकाः तरुणान् पान्थशालां हरन्ति = समोसे युवकों को होटल में ले जा रहे हैं।
१६. कृष्
कबड्डीस्पर्धकः प्रतिस्पर्धिणं सीमारेखां कर्षति = कबड्डी खिलाडी प्रतिस्पर्धी को सीमारेखा की ओर खींचता है।
पतिः पत्नीं गृहमकार्क्षीत् = पती पत्नी को घर खींच ले गया।
व्याधः हरिणं ग्रामं कर्क्ष्यति = शिकारी हिरण को गांव खींच ले जाएगा।
क्रेनयानं विकृतं शकटं नगरं कर्षतु = क्रेन बिगडी गाडी को नगर खेंच कर ले आवे।
१७. वह्
बलिवर्दः धान्यं पुरं वहति = बैल धान को शहर तक ढोता है।
जन्या जनीं पतिं वक्ष्यति = दूल्हे की सखी दूल्हन को पति तक ले जाएगी।
नदी नावं समुद्रं अवहत् = नदी नाव को समुद्र तक ले गई।
नालिः वृष्टिजलं समुद्रं वहेत् = नाली वर्षाजल को समुद्र तक ले जावे।
नौः यात्रिणं नदीपारं वहतु = नाव यात्रियों को नदीपार ले जावे।
प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कृपया त्रुटियों से अवगत कराते नए सुझाव अवश्य दें.. ‘‘आर्यवीर’’
अनुवादिका : आचार्या शीतल आर्या (पोकार) (आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन न्यास, रोजड, गुजरात, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति : ब्रह्मचारी अरुणकुमार ‘‘आर्यवीर’’ (आर्ष शोध संस्थान, अलियाबाद, तेलंगाणा, आर्यावर्त्त)