पाठ (५) द्वितीया विभक्तिः (२)

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संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ (५) द्वितीया विभक्तिः (२)

कर्त्तृवाच्य (एक्टिव वॉइस) में कर्म (=क्रिया की निष्पत्ति में कर्त्ता को अत्यन्त अभीष्ट वस्तु) कारक में द्वितीया विभक्ति होती है यथा-

तक्षकः काष्ठं तक्षति = बढ़ई लकड़ी छील रहा है।
पक्त्री अलाबूं त्वचयति = पाचिका लौकी छील रही है।
वानरः कदलीफलं त्वचयति = बन्दर केले का छिलका उतार रहा है।
पक्ता वृन्ताकं कृन्तति = रसोइया बैंगन काट रहा है।
मूषकः कर्गलानि कृन्तति = चूहा कागज काट रहा है।
पचः शाकं कर्त्तयति = पाचक सब्जी काट रहा है।
पचा वटकान् तलति = पाचिका वड़े तल रही है।
पक् रोटिकां वेल्लति = पाचक / पाचिका रोटी बेल रही है।
भगिनी चूर्णं गुम्फति = बहन आटा गूंथ रही है।
पेष्टा गोधूमान् पिंशति = पीसनेवाला गेहूं पीस रहा है।
पेषणी कटिजान् पिनष्टि = चक्की मक्का पीस रही है।
क्षोत्ता माषान् क्षुणत्ति = कूटनेवाला उड़द कूट रहा है।
शिल्पी कुट्टिमं कुट्टयति = मिस्त्री स्त्री फर्श को कूट रहा है।
कान्दविकः क्वथितालून् मृद्नाति = हलवाई उबले हुए आलुओं को मसल रहा है।
दुग्धविक्रेता दुग्धे जलं मेलयति = दूध बेचनेवाला दूध में पानी मिला रहा है।
घर्षकः गृञ्जनानि घर्षति = घिसनेवाला गाजर घिस रहा है।
मातुलानी मातुलुङ्गानि निष्पीडयति = मामी मुसम्बी निचोड़ रही है।
कुम्भकारः कुम्भं करोति = कुम्हार घड़ा बनाता है।
तन्तुवायः तन्तुं वयति = जुलाहा धागे बुन रहा है।
दिनकरः दिनं करोति = सूर्य दिन को करता है। (अर्थात् सूर्य के कारण दिन होता है।)
भास्करः भासं करोति = सूर्य प्रकाश को देता है।
दिवाकरः दिवां करोति = सूर्य दिन को करता है।
प्रभाकरः प्रभां करोति = सूर्य प्रकाश करता है।
अहस्करः अहः करोति = सूर्य दिन करता है।
विभाकरः विभां करोति = सूर्य प्रकाश करता है।
निशाकरः निशां करोति = चन्द्रमा रात्रि करता है।
लिपिकरः लिपिं / प्रतिलिपिं करोति = लिपिक प्रतिलिपी करता है।
कर्मकरः कर्म करोति = सेवक कार्य करता है।
क्षेत्रकरः क्षेत्रं करोति = किसान खेत का काम कर रहा है।
किङ्करः किमिति करोति = नौकर क्या करूं ऐसा पूछता है।
शंकरः शं करोति = शंकर (कल्याण करनेवाला) कल्याण करता है।
पूजार्हः पूजां अर्हति = भक्त पूजा के योग्य है।
आदरार्हः आदरं अर्हति = आदरणीय व्यक्ति आदर के योग्य है।
मालार्हः मालां अर्हति = पूज्य व्यक्ति माला द्वारा स्वागतयोग्य है।
गोदः गां ददाति = गाय दान करनेवाला गाय देता है।
पार्ष्णिंत्रं पार्ष्णिं त्रायते = मोजा एड़ी की रक्षा करता है।
अङ्गुलित्रम् अङगुलीः त्रायते = दस्ताना ऊंगलियों की रक्षा करता है।
मधुपः मधु पिबति = भौंरा शहद पीता है / शराबी शराब पीता है।
मधुकरः मधु करोति = भौंरा शहद बनाता है।
शास्त्र स्त्रज्ञः शास्त्रं स्त्रं जानाति = शास्त्र स्त्रज्ञ शास्त्र स्त्र जानता है।
शीधुपी शीधु पिबति = शराबी महिला मदिरापान करती है।
सुरापी सुरां पिबति = शराबी महिला मदिरापान करती है।
तुन्दपरिमृजः तुन्दं परिमार्ष्टि = आलसी तोंद थपथपा रहा है।
सामगी साम गायति = सामगान करनेवाली सामगान करती है।
न्यायकारी न्यायं करोति = न्यायकारी न्याय करता है।
दयाकरः दयां करोति = दयालु दया करता है।
सर्वाधारः सर्वान् आधरति = सर्वाधार सबको अच्छी तरह से धारण करता है।
सर्वेश्वरः सर्वान् ईष्टि = सर्वेश्वर सब पर शासन करता है।
सर्वज्ञः सर्वं जानाति = सर्वज्ञ सब कुछ / सब को जानता है।
अल्पज्ञः अल्पं जानाति = अल्पज्ञ थोड़ा जानता है।
सुखकरः सुखं करोति = सुखी सुख करता है।
सुखदः सुखं ददाति = सुखदाता सुख देता है।
दुःखकरः दुःखं करोति = दुःखी दुःख करता है।
दुःखदः दुःखं ददाति = दुःखदाता दुःख देता है।
कथाकारः कथां करोति = कथाकार कथा करता है।
श्लोककारः श्लोकं करोति = श्लोककार श्लोक बनाता है।
चाटुकारः चाटु करोति = चापलूस चापलूसी करता है।
सूत्रकारः सूत्रं करोति = सूत्रकार सूत्र बनाता है।
कलहकारः कलहं करोति = झगड़ालू झगड़ा करता है।
वैरकारः वैरं करोति = वैरी वैर करता है।
शकृत्करः शकृत् करोति = बछड़ा शौच करता है।
आत्मम्भरिः आत्मानं बिभर्त्ति = स्वार्थी अपना भरण-पोषण करता है।
धर्मधरः धर्मं धरति = धार्मिक धर्म को धारण करता है।
सत्यपालः सत्यं पालयति = सत्यपाल सत्य का पालन करता है।
गोपालः गां पालयति = गोपाल गाय / पृथ्वी / वाणी की रक्षा करता है।
गोपः गां पाति = गोपाल गाय / पृथ्वी / वाणी की रक्षा करता है।
गोरक्षः / गोरक्षकः गां रक्षति = गोपाल गाय / पृथ्वी / वाणी की रक्षा करता है।
धरणीधरः धरणीं धरति = पहाड़ / राजा पृथ्वी को धारण करता है।
अङ्गमेजयः अङ्गानि एजयति = कम्पवा अंगों को हिलाता है।
जनमेजयः जनान् एजयति = जनमेजय लोगों को हिलाता है।
मृत्युञ्जयः मृत्युं जयति = मृत्युंजय मृत्यु को जीतता है।
शत्रुञ्जयः शत्रून् जयति = शत्रुंजय शत्रु को जीतता है।
सञ्जयः सर्वं सञ्जयति = संजय सभी को अच्छी प्रकार जीतता है।
नासिकन्धमः नासिकां धमति = खर्राटे भरनेवाला खर्राटे (नीन्द) भर रहा है।
मुष्टिन्धयः मुष्टिं धयति = मुट्ठी पीनेवाला / चूसनेवाला बच्चा मूट्ठी चूस रहा है।
अङ्गुष्ठन्धयः अङ्गुष्ठं धयति = अंगूठा चूसनेवाला अंगूठा चूसता है।

प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कृपया त्रुटियों से अवगत कराते नए सुझाव अवश्य दें.. ‘‘आर्यवीर’’

अनुवादिका : आचार्या शीतल आर्या (पोकार) (आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन न्यास, रोजड, गुजरात, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति : ब्रह्मचारी अरुणकुमार ‘‘आर्यवीर’’ (आर्ष शोध संस्थान, अलियाबाद, तेलंगाणा, आर्यावर्त्त)

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