औद्योगिक विश्व में कार्यात्मक दृष्टि से परियोजना प्रबन्धन अत्यन्त कठिन कार्य है। इस कार्य के लिए ही अधुनातन पर्ट विधि का विकास हुआ। पर्ट का हिन्दी नाम है कामूआत- ‘कार्य मूल्यांकन आकलन तकनीक’। कामूआत में दो महत्वपूर्ण तत्व हैं- एक अविलम्ब पथ, दो द्वितीयक पथ। इसके अतिरिक्त संधियां तथा विलम्ब की अवधारणाएं हैं। समानान्तर कार्य भी इसका एक अंग है।
परियोजना की परिभाषा है एक जटिल महत कार्य जिसकी कसावटमयी समयबद्ध सीमा हो, जिसमें लागत लगनी हो, कई कई अन्तर्सम्बन्धित क्रियाएं हों तथा अदुहरावपूर्ण परिस्थितियों की चुनौतियां ही परियोजना है। अदुहरावपूर्ण परिस्थितियां तथा इन पर विजय का आह्लाद परियोजना का बोनस है।
क्या उपयुक्त अधुनातन पर्ट या कामूआत विद्या वैदिक संस्कृति में है? इस प्रष्न का उत्तर है निष्चित ही है। धनंजय के दषरूपकम् ग्रन्थ में कथा केे माध्यम से कार्य के तीन रूप- (1) प्रख्यात, (2) उत्पाद्य- कल्पनाजन्य, (3) मिश्र; तथा कार्य के तीन प्रवहण- 1. मुख्य, 2. प्रकरी, 1. पताका बनाए जाते हैं। इस प्रवहण में कुछ प्रवहण धर्म अर्थ काम त्रिवर्ग हैं, कुछ दो हैं, कुछ में केवल एक है। महत्ता के अनुसार कार्य विभाजन है। तथा इसकी पांच प्रकृतियां (बीज, बिन्दु, केतु, केतुका, कार्य), पांच अवस्थाएं (आरम्भ, यत्न, प्राप्ताषा, नियताप्ति, फलागम), पांच संधियां (मुख, प्रतिमुख, गर्भ, विमर्ष, उपसंहृति) हैं इसके पष्चात प्रति प्रकृति, प्रति अवस्था, प्रति संधि बारह या तेरा और विभाजन हैं। यह वैदिक दर्षन आधारित व्यापक पर्ट है।
परियोजना प्रबन्धक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है अनिश्चितता विजय या अदुहरावपूर्ण परिस्थितियों की चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना। वेद में ऐसी विजय का महत्व सहज, सरल षब्दों में दर्षाया गया है। ”लकीर के फकीरों नें नया कदम बढ़ाया, नया सूर्य गढ़ लिया।“
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)