धरती की शान, तू है मनु की सन्तान।
तेरी मुट्ठियों में बन्द तूफान है रे ऽ ऽ
मनुष्य तू बड़ा महान् है- भूल मत।। टेक।।
तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे।
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे।।
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे।
तू जो चाहे धरती से अम्बर को जोड़ दे।।
अमर तेरे प्रा ऽऽ ण, अमर तेरे प्राण मिला तुझको वरदान।
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान् हैं रे ऽ मनुष्य तू0।। 1।।
नैनों में ज्वाल, तेरी गति में भूचाल।
तेरी छाती में छिपा महाकाल है।।
धरती के लाल, तेरा हिमगिरी सा भाल।
तेरी भृकुटी में ताण्डव का ताल है।।
निज को तू जा ऽऽ न, निज को तू जान जरा शक्ति पहचान।
तेरी वाणी में युग का आह्नान है रे ऽ मनुष्य तू0।। 2।।
धरती सा धीर तू है अग्नि सा वीर।
अरे तू जो चाहे काल को भी थाम ले।।
पापों का प्रलय रुके, पशुता का शीश झुके।
तू जो अगर हिम्मत से काम ले।।
गुरु सा मतिमाऽऽ न्, गुरु सा मतिमान पवन सा तू गतिमान्।
तेरी नभ से भी ऊँची उड़ान है रे-मनुष्य तू0।। 3।।