दीप जलानेवाला रूठ गया …

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दीप जलानेवाला रूठ गया

ओ दिन के अवसान धरा पर दीवाली लाए।

हर घर में पथ में निर्जन में हरयाली लाए।

बाल हँसते मुस्काते हैं,

युवा अनेकों दीपों में तन्मय हो जाते हैं।

आरती सी नव बालाएँ,

दीपज्याति में ढूंड रही अपनी अभिलाषाएँ।

मिला क्या हमसे छूट गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 1।।

कल कोमल किसलय जिस पर आँचल फैलाते थे।

आ-आ कर मदमत्त मधुपगण गायन गाते थे।

फूला-फूला था उपवन में,

सौरभ बिखरा था निर्जन में नील गगनघन में।

बहारें आँख मिलाती थीं,

आ-आकर तितली मादक मकरन्द लुटाती थीं।

आज चुपके से सूख गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 2।।

होता प्रातःकाल सदा ही सन्ध्या आती है।

कभी हँसाती पगली जग को कभी रुलाती है।

जिन्दगी के चौराहे पर,

कुछ ही हँस पाते अक्सर जाते आँसू लेकर।

मनुज का आना सुख देता,

पर उसका प्रस्थान नयन में आँसू भर देता।

तार वीणा का टूट गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 3।।

अक्टूबर इकतीस तिरासी सन संध्यावेला।

रूठा मानव एक लगा था दुनियाँ का मेला।

आज विश्राम दिवस आया,

जीवनभर संघर्षों से ही घिरी रही काया।

उठो अजमेर नगर वालों,

बिन घर वाला चला जा रहा ऊँचे घरवालों।

मनुज का साथी छूट गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 4।।

हो तव इच्छा पूर्ण पिता माता प्रभु जगदीश्वर।

सुने शब्द पंछी भागा तजकर नश्वर पंजर।

दीवाली हँसी मकानों में,

जाते-जाते ज्योती जली तेरी स्मशानों में।

दीप मत तुम यों बुझ जाना,

हँसते रहना सदा सिखाया स्वामी ने गाना।

आज अमृतघट फूट गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 5।।

कांच दूध में पिलवाकर आशीष लेनेवालों।

अन्तिम बार-बार करलो गाली देनेवालों।

पहना लो सापों की माला,

लाओ विष यह चला जा रहा विष पीनेवाला।

न कल तुमसे मिल पाएगा,

कल जग कह स्वर्गीय नयन से अश्रु बहाएगा।

न कहना छिपकर दूर गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 6।।

कंधा देकर पँहुचा आए तुमको मरघट पर।

रोई उस दिन धरती थर-थर काँप उठा अम्बर।

दीपों की बाती रोई,

पहली बार तभी भारत माँ की छाती रोई।

पुत्र की चिता जलाने पर,

मैंने देखा फट जाते चट्टानों के अन्तर।

भाग्य धरती का फूट गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 7।।

तू जीवन भर लड़ा धरा पर नूतन दीप जले।

वर्षों से पददलित देश को शुभ स्वातन्त्र्य मिले।

तम न जीवन में रह पाए,

सहज ज्ञान की ज्योति मनुज अन्तर में भर जाए।

हटाए दुःख असत् बन्धन,

किया सत्य का अर्थ प्रकाशित वसुधा पर स्वामिन्।

सभी कुछ देकर दूर गया,

दीप जले पर दीप जलानेवाला रूठ गया।। 8।।

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