दशानन से घातक प्रजानन

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दस आनन सा बल है जिस एक आनन में वह है दशानन। बाद में यह अर्थ बदलता गया, और रावण दस सिरोंवाला बीस हाथोंवाला बना दिया गया। बीस पैरोंवाला रावण अभी नहीं हुआ है, अलबत्ता उसके दस आननों में एक गधा सिर जरूर जोड़ दिया गया है। नौ सिरों की महत्ता एक गधा सिर डुबो देता है यही इसका भाव है।

कई गावों में रावण भाटा मैदान हैं, जहां ईंट गारा से बने स्थायी रावण हैं। जो जलकर भी नहीं जलते, मरकर भी नहीं मरते। हर वर्ष दशहरे पर उसे रंगों-रोगन से नया कर लेते हैं। अर्थ यह कि रावण उर्फ दशानन अमर है।

दशहरा नाम सिद्ध करता है कि राम रावण के ही कारण जिन्दा है। दशानन न होता तो राम न होता। यथार्थ में भी दशानन के कारण ही राम ने जन्म लिया था। दशानन वध के बाद क्या रावण मरा? उत्तर है नहीं।

रावण को वर था कि उसका सिर कटकर फिर जुड़ जाएगा। यह वर अमर है। इसका प्रमाण है प्रजानन।

प्रजा का आनन समाविष्ट है जिसमें वह एक आनन है प्रजानन। प्रजानन का मोटा अर्थ है नेता, और साफ मतलब है प्रधानमन्त्री, मन्त्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि-आदि। ये सब प्रजानन हैं। एक दशानन घातक था। इतने प्रजानन कितने घातक हैं? आइए थोडा विचार करें।

प्रजाननों के अधिकार में दस नहीं अनेक आनन हैं। प्रधानमन्त्री ऊंगली की नोक पर मन्त्री बदल सकता है, सचिव बदल सकता है, दशानन के आनन नियत थे। प्रजानन के आनन परिवर्तनशील हैं। हां प्रधानमन्त्री अपनी पार्टी भी बदल सकता है, अपना आनन भी बदल सकता है। दशानन से कितना खतरनाक, भयानक है प्रजातन्त्र की उपज प्रजानन।

दशानन के पास मायावी शक्तियां थीं। वह आकाश में उड़ सकता था, अनेक रूप धर सकता था, आकाश काला कर दे सकता था। प्रजाननों के पास रावण से अधिक मायावी शक्तियां हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति महान प्रजानन के पास कोड शब्द हैं जिन्हें दबाते ही दनदनाते परमाणु अस्त्र पूरे विश्व को काला कर दे सकते हैं, भून दे सकते हैं। सारी दुनियां को एक बार नहीं कई-कई बार मानव जाति से रहित किया जा सकता है। तकनीकी दृष्टि से यह सम्भव है।

सामान्य प्रजानन भी कम नहीं है। हर राष्ट्र के प्रधानमन्त्री वे प्रजानन हैं जिनके पास अपार शक्ति है, दशानन से कहीं अधिक। एक घोडे़ पर सवार व्यक्ति छ पावों का मालिक होता है। दशानन बीस पगों की शक्ति रखता था। ये प्रजानन शत-शत अश्वशक्ति युक्त विमानों के पगों वाले हैं। इनके हजारों पांव हैं, हजारों गतियां हैं।

दशानन काल में प्रजातन्त्र नहीं था। प्रजतन्त्र का अधकचरा रूप था। प्रज = व्यक्ति। व्यक्ति आधारित व्यवस्था में सर्वाधिक शक्तिशाली सर्वाधिक योग्यता के कारण रावण राजा था। वह स्वयं स्व-शक्ति रक्षित था। आज प्रजातन्त्र है। प्रजानन को दस करोड़ रुपए प्रतिवर्ष की सुरक्षा चाहिए। जितनी मंहगी सुरक्षा व्यवस्था जहां होती है वहां उतनी ही अव्यवस्था होती है। महान प्रजानन को 2.8 लाख रु. प्रतिवर्ष की सुरक्षा चाहिए। दशानन के बीस हाथ थे, प्रजानन की रक्षा में सोलह रु. दैनिक वेतन पानेवाले हाथ यदि लगें तो पैंतीस हजार हाथ लगे हैं। एक रावण जो उस समय योग्यतम राजनीतिज्ञ, शक्तिशाली, वेद-ज्ञाता विद्वान था वह मात्र स्वयं रक्षित था। आज एक प्रजानन की योग्यता मात्र भारत का नागरिक होना तथा पागल दीवालिया न होना है, जो निम्नतम है। उसकी इतनी सुरक्षा व्यवस्था कि उसे पैंतीस हजार हाथ रक्षित करें, जब कि इस पद के योग्य भारत में पैंतीस करोड़ व्यक्ति सहज उपलब्ध हैं। यह कितनी बड़ी विडम्बना है।

दशानन अपने सभासदों से घिरा निकलता था, तो वह तारों में सूर्य, हाथियों में सिंह के समान प्रतीत होता था। और आज का प्रजानन ब्रिटेन के अलिखित संविधान जो समस्त संविधानों की डालडा जननी है के अनुसार ”मेहराब का मुख्य पत्थर, तारों में चन्द्रमा“ आदि है; जब कमाण्डों से घिरा, सादे वेशधारी जासूसों से घिरा निकलता है तो ऐसा लगता है मानों हाथियों से घिरा चूहा हो।

प्रजातन्त्र व्यवस्था में चूहा मत बटोर ले तो मुकुट का अधिकारी हो जाता है। कुत्ता मत बटोर ले तो वह राजसिंहासन पर बैठ जाता है। पर क्या मुकुट पहनने से, राजसिंहासन बैठने से इनकी आदतें कुतरनें, जूता काटने की छूटती हैं?

प्रजातन्त्र व्यवस्था में चूहे को कुत्ते को हजारों पांव, हजारों हाथ, हजारों सिर दे दिए जाते हैं वह प्रजानन हो जाता है। और कालान्तर में इन हाथों का यदि वह पांच प्रतिशत भी प्रयोग कर लेता है तो उसे कुछ बौने प्रजानन देशरत्न, देशसपूत की उपाधियां दे दिया करते हैं।

आज विश्व के अधिकांश देशों में माताएं सड़कों पर, स्टेशनों पर, गन्दी-गलीच झोपड़ियों मंे, ट्रेनों में प्रजाननों के जाने के कारण रस्ता रुकावट से कभी-कभी जीपों में शिशुओं को जन्म देती हैं। ये शिशु धूलों में, ट्रेन डिब्वों के कारिडारों में, रेल्वे स्टेशन की बेंचों पर, कीचड़ भरी नालियों किनारे, सड़ते केले छिलकों, उड़ते बीमारी जीवाणुओं, टट्टियों की बदबुओं के मध्य पड़े पलते हैं, मरते हैं। कुछ जीते हैं। और उन देशों के प्रजाननों सजी संसदें इनकी सुरक्षा से बेखबर संसद में भूतपूर्व, वर्तमान प्रजानन सन्तानों की सुरक्षा हेतु संविधान संशोधन पेश करती है। प्रतिप्रजानन रिश्ते जुड़े व्यक्ति की सुरक्षा पर करीब चालीस हज़ार रु. प्रतिदिन व्यय अनुमोदन देती है।

मैं रावण राज्य में नहीं रहा हूं। मैं नहीं जानता वहां क्या होता था। पर इतना सब जानते हैं कि उसकी पूरी लंका सोने की थी। मैं यह जानता हूं कि प्रजाननों कि प्रजातन्त्र व्यवस्था में आम आदमी का ईमानदारी पूर्वक जीना दूभर है। यहां योग्यता, कर्तव्यनिष्ठा, सत्यवादिता की कोई कदर नहीं। संविधान ही संविधान के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

पढ़ा था कभी एक शेर सरल सा
पहले दूध से घी बनता था,
अब वनस्पति से घी बनता है।
पहले जननी जनती थी,
अब सारा आलम जनता है।

प्रजातन्त्र से पूर्व जननी महान पुरुषों का निर्माण करती थी। बच्चों में बचपन से गुण भर-भर कर उन्हं महान व्यक्तित्त्व देती थी। प्रसिद्ध था ”माता निर्माता भवति“। आज प्रजातन्त्र है। प्रजा जनती है। प्रजा की कोख जिसे चाहे उसे नेता गढ़ दे। प्रजानन बना दे, और प्रजानन बनते ही सब बदल जाए।

आम आदमी की तरह रात सोए सुबह दरवाजे बुलेटप्रुफ कारें खड़ीं हो जाएं साथ कमाण्डो का एक दस्ता। एक रात और आम आदमी प्रजातन्त्र ने दीवारों से घेर दिया, प्रजानन बना दिया, उसकी दुनियां बदल गई।

संविधान व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करता है। गरिमा का अर्थ क्षमता द्वारा प्राप्त ऊंचाइयां होता है। ऐसे व्यक्ति चीफ इंजीनियर, महाप्रबन्धक, प्रबन्धनिदेशक आदि हैं। बहुत पढ़े लिखे डॉक्टर, पी.एच.डी., डी.लिट् आदि उच्च शिक्षित भी गरिमापूर्ण व्यक्ति हैं। इनमें सभी के सभी प्रजाननों से दुर्लभ हैं। इनके समकक्ष भारत में इने गिने हैं… हजार, दो हजार या ज्यादा से ज्यादा लाख। पर प्रजानन मूल योग्यतामय तो पैंतीस करोड़ हैं और संविधान गरिमा को सुनिश्चित करता है। प्रजाननों से इन्हें स्थल-स्थल अपमानित करवाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता है।

ऊंचाइयों के क्रम में लें तो चेयरमेन का पद सर्वाधिक योग्यता तथा अनुभव युक्त व्यक्ति द्वारा भरा जाता है। ऐसे व्यक्ति दुर्लभ हैं अतः यहां अधिकार अधिक हैं। फिर क्रमशः प्रबन्धनिदेशक, अधिकारी निदेशक आदि पदों से चपरासी पद तक योग्यता का अवमूल्यन हो जाता है। चपरासी के पद हेतु करोड़ों योग्य होते हैैं अतः वह पद कम महत्वपूर्ण है।

चपरासी से भी कम योग्यता का पद है प्रजानन पद या एम.एल.ए., एम.पी., प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति पद पर उसमें अधिकार आकाश भर दिए जाते हैं। परिणामतः प्रजानन दशानन के भी विकृत रूप हो गए हैं। जिससे विश्व मानवता कराह रही है।

योग्यता का व्यक्तिगत श्रम से सीधा सम्बन्ध है। योग्यता महनत द्वारा सीढ़ी दर सीढ़ी प्राप्त की जाती है। और योग्यता दो व्यक्तियों में द्विगुणित या युजित नहीं होती। एम.ए. की कक्षा को पढ़ाने के लिए पी.एच.डी. न मिलने पर हम दो चार बी.ए रखकर काम नहीं चला सकते चाहे कितनें भी लोग इस पक्ष में मत दे दें। छै अरब मत मिलकर भी एक बी.ए. को एम.ए. नहीं बना सकते। यही एम.ए. की गरिमा है कि बी.ए स्व महनत से ही एम.ए. हो सकता है।

पर प्रजातन्त्र व्यवस्था में मताधीशों को मत पाते ही उनसे ज्यादा शिक्षित डॉक्टरों, इन्जीनियरों, वकीलों, शिक्षाविदों के कानों में विभिन्न सम्मेलनों में अज्ञान थूकने का अधिकार मिल जाता है। न केवल इतना वरन इनके विषय में नीतियां बनाने का भी अधिकार मिल जाता है। कितनी घातक है यह प्रजानन व्यवस्था।

घुड़सवारों की भीड़ में पैदल हमेशा कुचला जाता है, मारा जाता है। प्रजातन्त्र व्यवस्था ने साम्प्रदायिकों के, धूर्तों के, मठाधीशों के, जातियों के भाषाओं के, दलों के निहित स्वार्थों के आधार पर बने दबाव समूहों को मान्यता दे-दे कर देशों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया है। विश्व पहले ही देश टुकड़े-टुकड़े था। अब यह और देशों में विभाजित हो रहा है, तथा देश और टुकड़ों में विभाजित हो रहे हैं। इन विभाजन समूहों की भीड़ में पैदल योग्यताएं भरपूर मारी जा रही हैं। छोटे प्रजानन पैदा हो रहे हैं। इन छोटे प्रजाननों को बड़े प्रजानन सहर्ष मान्यता दे रहे हैं।

इस समस्या का कोई निदान है? एक दशानन का एक राम ने वध किया था। आज इतने प्रजानन गली, कूचे, शहर, नगर में फैले हुए हैं। इनका वध करने, इनके पदों को मिटाने सैकड़ों हजारों राम लगेंगे। हमें, तुम्हें, इन्हें, उन्हें वह राम बनना होगा जो प्रजातन्त्र की हत्या कर सके।

प्रजातन्त्र हत्या, प्रजानन समाप्ति के बाद का विकल्प है ‘प्रति-जन-तन्त्र’ या ‘प्रज-तन्त्र’ या ‘स्व-तन्त्र’। यह व्यवस्था पैदल आधारित होगी। हर पैदल को योग्यता तथा अनुभव के आधार पर ही अधिकारों तथा कार्यक्षेत्रों का विवरण किया जाएगा। योग्यता प्राप्ति के अवसर सभी के लिए निःशुल्क तथा समान होंगे।

स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)

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