योगी विश्वद्रष्टा सत्यतत्व को सुस्रष्टा तू ही।
तू युगावतार तू नैष्ठिक ब्रह्मचारी है।।
तेरी सत्यवृष्टि दृष्टि सृष्टि ही अनेरी तेरी।
तेरी वज्र काय तू ही वज्र काछधारी है।।
तू ही गिरी गव्हर को वीर केसरी महान।
तू ही अवधूत वनवासी को बिहारी है।।
देश को विधायक तू विश्व को विनायक तू।
सत्यता सहायक तिहारी बलिहारी है।।२४।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई