प्राणियों में ही नहीं अपितु वनस्पति में भी जीव है यह सिद्ध करने वाले महान भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस का जन्म 20 नवम्बर 1858 में ढ़ाका समीप मयमनसिंह नामक नगर में हुआ था। वर्तमान में ढ़ाका बांग्लादेश की राजधानी है।
जगदीश चन्द्र बोस के पिताजी भगवानचन्द्र डेप्युटी मेजिस्ट्रेट थे। आपकी माता वामसुंदरी एक ईश्वरपरायण और धार्मिक महिला थी।
जगदीश चन्द्र को बचपन से ही पदार्थ विज्ञान के साथ-साथ संस्कृत साहित्य में भी गहन रुचि थी। आपने कोलकाता की सेन्ट जेवियर्स कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा पास की थी। उसके बाद आप केम्ब्रिज युनिवर्सिटी में अभ्यास हेतु इंग्लैण्ड गए। वहां से सन् 1884 ई. में बी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की और भौतिक शास्त्र पर कार्य किया।
सन् 1885 ई. में जगदीश चन्द्र कोलकत्ता की प्रेसिडेन्सी कालिज में पदार्थ विज्ञान के अध्यापक बने। सन् 1890 ई. में आपने पेरिस में आयोजित पदार्थ वैज्ञानिकों के सम्मेलन में भाग लिया।
अपने प्रेसिडेन्सी कॉलेज में अध्ययन कार्य करते हुए एक ऐसा यन्त्र तैयार किया जिसकी सहायता से 2.5 से 0.5 से.मी. के अत्यन्त सूक्ष्म परिमाण के विद्युत तरंगों का निर्माण किया जा सके। आपने इस विद्युत को विद्युतकिरण के उद्गम से दूर पकड़ सके ऐसा ग्राहक यन्त्र (रिसीवर) भी तैयार किया। इस यन्त्र की सहायता से बिना तार ही संदेश भेजना सम्भव हुआ। इस संशोधन के लिए आपको लन्दन विश्वविद्यालय की डॉक्टर ऑफ सायन्स’ की पदवी मिली।
जब जगदीश चन्द्र अपनी विद्युत सम्बन्धी शोध कर रहे थे उसी समय ही आपके मन में विचार आया कि इस संशोधन का प्रयोग वनस्पति पर किया जाए। आपने यह सिद्ध किया कि वनस्पति में भी जीवन होता है और वे भी दुःख या कष्ट दिए जाने पर पीड़ा से छटपटाते हैं। इसके लिए आपने मैग्नेटिक कोस्मोग्राफ नामक यन्त्र को बनाया। विश्व के वैज्ञानिकों ने भारतीय दर्शन के इस शाश्वत सन्य का स्वीकार किया कि वनस्पति में भी जीवन होता है।
सन् 1896 ई. में जगदीश चन्द्र बोस ने लिवरपुल में रॉयल इन्स्टिट्यूट में वैज्ञानिकों के समक्ष अपने इस नवीनतम आविष्कार पर प्रवचन दिया। सन् 1904 ई. में श्रीमती बुज की अर्जी के आधार पर आपका पेटन्ट का स्वीकृत हुआ। आप इन सभी यन्त्रों के निर्माणकर्ताओं में अग्रसर थे, जिनके द्वारा आधुनिक युग में फोटो वोल्टेक सेल की सहाय से इलेक्ट्रोनिक यन्त्रों का निर्माण हो रहा है।
1920 ई. में आप रोयल सोसायटी के सदस्य चुने गए। 1922 ई. में लीग ऑफ नेशन्स में आपको अन्तर्राष्ट्रीय इन्टेलेक्चुअल कॉपरेटिव कमेटी के सदस्य बनाए गए। 1925 ई. में जिनेवा में विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टाईन के साथ आपकी भेंट हुई। 1928 ई. में आप विएना में एकेडमी ऑफ सायन्स के विदेश सचिव नियुक्त हुए।
सन् 1902 से 1907 ई. के बीच प्रकाशित हुए आपके मुख्य शोधग्रंथ हैं – 1. लिविंग एंड नोन लिविंग 2. प्लान्ट रिस्पोन्स 3. कम्परेटिव इलेक्ट्रो साईकोलॉजी
डॉ. जगदीश चन्द्र बोस ने अपना जीवन विज्ञान को समर्पित कर दिया। आपने सन् 1917 ई. में ‘बसु विज्ञान मन्दिर’ का निर्माण कराया। सन् 1936 ई. में आपका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। अन्ततः 24 नवम्बर 1936 में भारतमाता के इस महान सपूत को काल के क्रूर हाथों ने हमारे पास से छीन लिया। आपके नाम से भारत आज विश्व में गौरवान्वित है।