शान्त कहते हैं स्थैर्य तथा संतुलन को। अशान्त कहते हैं अस्थैर्य तथा असंतुलन को। हमने 175 रु. देकर एक अस्थैर्य और असंतुलन भरी पार्टी भोगी। हम ठहरे महायोगी, अतः यह पार्टी भी भोग गए।
पार्टी में थोडे विलम्ब से पहुंचे। चौंक गए कि सारे टेबल थे भरे भरे। हॅलो हॅलो की। हाथ मिलाए। एक टेबल, दो टेबल… मध्य टेबल देख हम लड़खड़ा गए बिन पिए। मध्य टेबल बडा ही वजनी था। अष्ट ग्रह वहां एक सीध बैठे थे- एक जी.एम., सात डी.जी.एम.। प्रलय! खुदा खैर करे। पर उस टेबल पर तो सृष्टि बरस रही थी। इतनी चिकन चिल्ली, मूंगफल्ली, पनीरचिल्ली, फिशतल्ली, पकोड़ामिन्नी कि न पीने वाले डी.जी.एम. भी पीने के ताव में आ गए थे। हमें अमेरिकन गुलाब याद आ गया जिसे बड़ा करने के लिए आस पास की कलियां नोच लेते हैं। और आसपास की कलियां नुचे टेबल वहां पर बरस बरस रहा था।
घोड़ा दाना श्रेष्ठ दाना-
वो भी थोड़ा थोड़ा खाना।
हम सामने की एक टेबल पर चले गए- जहां सीधे सरल शुद्ध शाकाहारी, पाकाचारी बैठे थे। उनका टेबल हरित उपवन में मरुस्थल था। चिकनफिश तो दूर यहां मिन्नी पकोड़ा कूद भी नहीं हुई थी। रात के सव्वा नौ बजे उनके चेहरे की सुइयां जेठ दोपहर के बारा बजा रही थीं। सारे चम्मच खाली प्लेटों के सीने से चिपके जा रहे थे। हमारे बैठते वहां एक हल्का सा आशा भू-चाल आया। हमने बैरे से प्लेट मंगाई। एक, दो, तीन, चार बैरे प्लेट न आई। हमने कहा भाग्यशाली हो दोस्तों तुम सप्लेट हो तो हम अप्लेट ही हैं। लोगों के दिमाग वेजिटेरियन उबाल आया। बाई काट हमने उकसाया। तुम्हारा होगा पत्ता साफ उन्होंने जताया।
हम उठे ऑर्गनाइजरों के पास गए। वहां सफाचट, नव अर्धमुच्छड़, बालमुच्छड़ मुख चिल्ली भर इकट्ठे मिले। टेबलों पर कुछ नहीं है? कुछ करेंगे आप? हम पिले। वे खाए-पिए थे, दिमाग में पेट भरे थे। चारों हम पे घुड़कियां बरसे- भौं भौं भौं भौं… चीखे-पिल्ले। हमें एक प्लेट दिला सकेंगे? तो दिला देंगे। हम लौटे.. हमें डिस मिस.. मिस मिस डिस डिस ऑर्गनाइजर लगे। हम जगह लौटे। बेप्लेट बैठे। अरसा बीत गया। ”ले मेरी पप्सी पी“- एक ने भीखवत दी। हमसे पी न गई।
फिर बैरा आया। वो मिनी पकोड़ा लाया। मिनी चिलमची में मिनी पकोड़ा लाया। छीन चिलमची हमने दी घुड़की। ”तुम प्लेट लाओ फिर चिलमची पाओ“हम बैरा बने। लोग प्लेट उर्फ चौड़ा कटोरा भिखारी बने। ”और दो, ज्यादा दो, दुबारा दो!“ और हमारी प्लेट आ गई। चिलमची छीनी। हमारी प्लेट खाली रही। हमने भीख दी पेप्सी पी।
कुछ तो करना था। कांटा घड़ी का बारह अंक घूमा। लगा बारा बरस बीत गए। बरस थे रीते। घूरे के दिन फिरे। भारत के पचास वर्ष में न फिरे। हमने भाग्य सराहा। एक बच्चा बैरा आया- हमारा खेल खिलाया। भापा-पन काम आया। फिर पनीर चिल्ली आई। चिल्ली चिल्ली न थी- बेसनाई थी आई। भूख ने खाई। फल्ली मुंह दिखाई मांगने भी न आई। चिकन चिल्ली दौड़ आई, बस एक ने खाई। फिश फ्राई आई, दो नयों एक पुराने ने खाई। मिनी भजिया भी आया। पहली बार सबने दुबारा खाया। हमने पहली बार चखा। हल्दी मिले गेहूं का था गुलगुला। बिलकुल पार्टि ऑर्गनाइजरों की तरह गोलमाल गुलगुला। लालू की तरह लालू कदमों पर आयोजकों को रहा था चला। हम चख ही रहे थे पार्टी पहला दौर उठ गया कि अष्ट ग्रह लगे थे घूमने हाथों गिलास धरे।
हमने गिलास मंगाया। सात बैरों बाद आया। बर्फ पानी में पचास बंूद पेप्सी- बिल्कुल शराब रंग आ गया। एक्टींग में पैर रहे लड़खड़ा- मैं भी हूं पी रहा। लोगों को जी रहा। होशित अकेला लोगों की होश और बेहोश हरकतों का गवाह। तीन डाउन आगा पीछा ऊल जलूल रहे बक। मैं रहा हंस। तीन अर्ध डाउन डाउन से ज्यादा खतरनाक। फिर अभी खाना खराब होना था। पनीर सब्जी में खराब खटास, रायते में दही बास, पापड़ गट्ठा, भिंडी लिजलिजी लेसदार, सलाद रंग ही अस्वीकार, पूड़ी ठंडी मेहंगी रंडी। खान को साबुनवत पैसा लोग रहे हैं खा।
हम आइसक्रीम काऊंटर गए। काऊंटर एटैक हुआ। बैरा बांटने ले गया। पीछा करो… पीछा करो। हम हुए नैन तरेरा। वह बोला आजा इसी गाडी बैठ जा। भुसभुसी प्लेट मानो ब्लाटिंग पेपर या केयर-फ्री। हमनें दो पीस ली। बैरे मालिक को मानों कपकपी दी।
क्या पार्टी शबाब! पान में थी शराब। पान और आवेग। अद्भुत मिलन। भाजपा और ते दे का। हम गए खा।
अंत में मिला बिदाई पार्टी दूल्हा। अंत भला सो सब भला।
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)