ध्येय गीत (प्रातःयज्ञ के समय)
ओ३म् इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।
अपघ्नन्तो अराव्णः।। (ऋग्वेद ९/६३/५)
हे प्रभो! हम तुम से वर पाएँ।
सकल विश्व को आर्य बनाएँ।।
फैलें सुख सम्पत्ति फैलाएँ।
आप बढ़ें तव राज्य बढ़ाएँ।। 1।। हे प्रभो!
राग द्वेष को दूर भगाएँ।
प्रीति रीति की नीति चलाएँ।। 2।। हे प्रभो!