और किसका मैं पकडुँ सहारा …

0
223

और किसका मैं पकडुँ सहारा।
स्वामी तेरे सिवा कोई नहीं है।। टेक।।

जिन्दगी को मैं खोता रहा यूँ।
गफलत में मैं सोता रहा यूँ।
कितनी गुजरी हैं दिन और रातें।
नीन्द आँखों से धोयी नहीं है।। 1।।

ठुकराया हूँ सारे जहाँ का।
अब मैं यहाँ का रहा ना वहाँ का।
अब तो जिन्दगी है तेरे हवाले।
तेरे दर का भिखारी यही है।। 2।।

तुझ सा दानी नहीं है जहाँ में।
माँगने फिर मैं जाऊँ कहाँ मैं।
जिसने पकड़ा है दामन तुम्हारा।
उसकी किस्मत फिर सोई नहीं है।। 3।।

दे दो थोड़ा अनिल को सहारा।
इसको भी मिल जाएगा किनारा।
सौंप दी जिसने तुमको सफीना।
वह तुमने डुबोई नहीं है।। 4।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here