“ओ ब्रह्म ज्योति के परवाने”

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“ओ ब्रह्म ज्योति के परवाने”
(तर्ज :- इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा)

इसलिए ओऽम् से लगन लगा।
कि तू अल्पज्ञ है नन्हा सा।।
ज्ञान तू अपना रे खूब बढ़ा।
कि ऋत के साथ रहे तू जुड़ा।। टेक।।

ऋत में ये विश्व प्रवाह बहे।
ये ब्रह्म नियम हैं समर्थ बड़े।।
इन पर चलकर जीवन बीते।
आत्म नवोच्च शिखर जा चढ़े।। 1।।

ओ ब्रह्म ज्योति के परवाने।
तू विश्व रहस्य सभी जाने।।
दुनियां तुझको उलझा न सके।
कि तू साधक है रे सधा सधा।। 2।।

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