“लगन”
(तर्ज :- ओहरे ताल मिले नदी के जल में)
ओहरे ज्ञान मिले वेद पढ़न से पढ़न मिले लगन से।
लगन मिले कौन यतन से, कोई जाने ना।। टेक।।
माया को जीव तरसे, जीव को आत्मा।
पेट से मानव बंधे सूझे ना रास्ता।
ओ साधक रे ऽ
आनन्द मिले कौन से पथ से कोई जाने ना।। 1।।
धरम तो हार गया, जीत गई रीत रे।
स्वारथ ही बाकी रहा, कोई ना मीत रे।
ओ जीवक रे ऽ अश्रु बहे काहे नयन से, भापा भी जाने ना।। 2।।