एव शब्द के दो अर्थ होते हैं। 1. अयन, 2. अवन। अयन का अर्थ है गमन और अवन का अर्थ है रक्षण। धरती ‘एव’शब्द की सही परिचायिका है। धरती अन्तरिक्ष में विभिन्न गतियों से गमनशीला है तथा सुखदा, दिशिदा (अदिति), ज्यातित, स्थिर, अछिद्रा आदि है। इसका नाम ही अवनी है। अवनी ऋत नियमों से बंधी होने के कारण विभिन्न गतियां करती हुई भी सुरक्षित है।
‘गति’ही समस्त दुर्घटनाओं को जन्म देती है। अन्तरिक्षयान, हवाईजहाज, रेलगाड़ी, बस, कार, स्कूटर, कन्वेयर बेल्ट, क्रेन, मोटरें (यांत्रिक), गिरनेवाले सामान, झूलनेवाले सामान इन सबमें गति है अतः इन क्षेत्रों दुर्घटनाओं की भरमार है। चैतन्य मानव भी गतिशीलता के कारण स्वयं को दुर्घटनाग्रस्त कर लेता है। ऊँचाई पर चलते समय, ऊँचाई से उतरते समय, ऊँचाई पर चढ़ते समय की कार्यगतियाँ उद्योगशाó में अधिकतम दुर्घटनाओं का कारण होती हैं। दुर्घटना की परिभाषा भी गति के इर्द-गिर्द ही बुनी गई है।
”वह अचानक घटित (गतिमय घटनेवाली) घटना जिससे प्रक्रिया में रुकावट (गतिभंग) हो, जान-माल-मशीन या तीनों का नुकसान हो तथा जो असुरक्षित कार्य (गति) असुरक्षित स्थिति (गतिशील या गति देनेवाली) में घटे दुर्घटना है।“इसके विपरीत सुघटना कह परिभाषा है जो रक्षण से सम्बन्धित है। ”वह सुनियोजित घटना जिसके करने से प्रक्रिया जारी रहते जान-माल-मशीन के स्वास्थ्य का संरक्षण होता हो तथा जो सुरक्षित स्थिति या सुरक्षित कार्य या दोनों के कारण घटे सुघटना है।“
इस प्रकार एव शब्द अयन तथा अवन रूप में सुरक्षा इंजीनियरिंग प्रबन्धन का विज्ञान दर्शाता है।
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)