उभयकालीन पक्ष्येष्टि पूर्णिमा अग्निहोत्र

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अथ सङ्कल्पपाठः
ओं तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहरोत्तरार्द्धे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमें कलियुगे कलिप्रथम- चरणेऽमुक….. संवत्सरे, …..अयने, …..ऋतौ, …..मासे, …..पक्षे, …..तिथौ, …..वासरे, …..नक्षत्रे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तदेशान्तर्गते …..प्रान्ते, …..जनपदे, …..मण्डले, …..ग्रामे/नगरे, …..आवासे/भवने, मया/अस्माभिः पक्ष्येष्टि अमावस्या अग्निहोत्र-कर्म क्रियते।

अथाचमन-मन्त्राः
ओम् अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।। १।।
इससे एक
ओम् अमृतापिधानमसि स्वाहा।। २।। इससे दूसरा
ओं सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।। ३।। (तैत्तिरीय आर. प्र. १०/अनु. ३२, ३५)
इससे तीसरा आचमन करके तत्पश्चात् जल लेकर नीचे लिखे मन्त्रों से अंगों को स्पर्श करें।

अथ अङ्गस्पर्श-मन्त्राः
ओं वाङ्म आस्ये ऽ स्तु। इस मन्त्र से मुख
ओं नसोर्मे प्राणो ऽ स्तु। इस मन्त्र से नासिका के दोनों छिद्र
ओं अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। इस मन्त्र से दोनों आंख
ओं कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। इस मन्त्र से दोनों कान
ओं बाह्वोर्मे बलमस्तु। इस मन्त्र से दोनों बाहु
ओम् ऊर्वोर्म ओजो ऽ स्तु। इस मन्त्र से दोनों जंघा
ओम् अरिष्टानि मे ऽ ङ्गानि तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। इस मन्त्र से दाहिने हाथ से जल स्पर्श करके मार्जन करना। (पारस्कर गृ.का.२/क.३/सू.२५)

अथ-ईश्वर-स्तुति-प्रार्थनोपासनामन्त्राः
ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।
यद् भद्रन्तन्न ऽ आसुव।। १।। (यजु अ.३०/मं.३)
हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक ऽ आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।। २।। (यजु.अ.१३/मं.४)
य ऽ आत्मदा बलदा यस्य विश्व ऽ उपासते प्रशिषं यस्य देवाः।
यस्य छाया ऽ मृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम।। ३।। (यजु.२५/१३)
यः प्राणतो निमिषतो महित्वैक ऽ इद्राजा जगतो बभूव।
य ऽ ईशे ऽ अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम।। ४।।
येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढ़ा येन स्वः स्तभितं येन नाकः।
यो ऽ न्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम।। ५।। (यजु.अ.३२/मं.६)
प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्।। ६।। (ऋ.म.१०/सू.१२१/मं.१०)
स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यत्र देवा ऽ अमृतमान- शानास्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त।। ७।। (यजु.३२/१०)
अग्ने नय सुपथा राये ऽ अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुराणमेनो भूयिष्ठान्ते नम ऽ उक्तिं विधेम।। ८।। (यजु.अ.४०/मं.१६)

अग्न्याधानम्
ओं भूर्भुवः स्वः। (गोभिल.गृ.प.१/खं.१/सू.११)
ओं भूर्भुवः स्वर्द्यौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा।
तस्यास्ते पृथिवि देवयजनि पृष्ठे ऽ ग्निमन्ना दमन्नाद्यायादधे।। (यजृ.अ.३/मं.५)
ओम् उद् बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स ँ् सृजेथामय९च।
अस्मिन्त्सधस्थे ऽ अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्चसीदत।। (यजु. १५ / ५४)

समिदाधानम्
ओम् अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्द्धस्व चेद्ध वर्द्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसे नान्नाद्येन समेधय स्वाहा।
इदमग्नये जातवेदसे – इदन्न मम।। १।।
(आश्वलायन गृ.सू. १/१०/१२) इस मन्त्र से घृत में डुबोकर पहली..
ओं समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्।
आस्मिन् हव्या जुहोतन स्वाहा।। इदमग्नये – इदन्न मम।। २।। (यजु. ३/१) इससे और..
सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन।
अग्नये जातवेदसे स्वाहा।। इदमग्नये जातवेदसे – इदन्न मम।। ३।। (यजु.३/२)
इस मन्त्र से अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी और..
तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्द्धयामसि।
बृहच्छोचा यविष्ठ्या स्वाहा।। इदमग्नये
ऽ ङ्गिरसे – इदन्न मम।। ४।। (यजु. ३/३)

प९चघृताहुतिमन्त्रः
ओम् अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्द्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्बह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा। इदग्नये जातवेदसे – इदन्न मम।। (आश्व.गृ.सू. १/१०/१२)

जलसि९चनमन्त्राः
ओम् अदिते ऽ नुमन्यस्व।। १।। इससे पूर्व में
ओम् अनुमते ऽ नुमन्यस्व।। २।। इससे पश्चिम में
ओम् सरस्वत्यनुमन्यस्व।। ३।। इससे उत्तर दिशा में
ओं देव सवितः प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय। दिव्यो गन्धर्वः केतपूः केतं नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु।। ४।। (यजु.अ. ३०/मं. १) इस मन्त्रपाठ से वेदी के चारों ओर जल छिड़काएं।

आघारावाज्यभागाहुतिमन्त्राः
ओम् अग्नये स्वाहा। इदमग्नये – इदन्न मम।। १।।
इस मन्त्र से वेदी के उत्तर भाग अग्नि में
ओं सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय – इदन्न मम।। २।। (गो.गृ.प्र.१/खं.८/सू.२४)
इससे दक्षिण भाग अग्नि में
ओं प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये – इदन्न मम।। ३।। (यजु. २२ / ३२)
ओम् इन्द्राय स्वाहा। इदमिन्द्राय – इदन्न मम।। ४।। (यजु.२२/२७) इन दोनों मन्त्रों से वेदी के मध्य में दो आहुतियां दें। उक्त चार घृत आहुतियां देकर नीचे लिखे चार मन्त्रों से प्रातःकाल अग्निहोत्र करें।

प्रातःकालीन-आहुतिमन्त्राः
ओं सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा।। १।।
ओं सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा।। २।।
ओं ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा।। ३।।
(यजु. ३/९)
ओं सजूर्देवेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या।
जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा ।। ४।। (यजु. ३/१०)
अब नीचे लिखे मन्त्रों से प्रातः सांय दोनों समय आहुतियां दें।

प्रातः सांयकालीनमन्त्राः
ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा। इदमग्नये प्राणाय – इदन्न मम।। १।। (गोभिगृह्यसूत्र०प्र.१/खं.३/यू. १-३)
ओं भुवर्वायवे ऽ पानाय स्वाहा।
इदं वायवे ऽ पानाय – इदन्न मम ।। २।।
ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा।
इदमादित्याय व्यानाय – इदन्न मम।। ३।।
ओं भूर्भुवः स्वरग्निवायवादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः स्वाहा। इदमग्निवायवादित्येभ्यः प्राणापानव्यानेभ्यः इदन्न मम।। ४।। (तैत्तिरीयोपनिषदाशयेनैकीकृता ऋ.भा.भू. पंचमहा.)
ओम् आपो ज्योतीरसो ऽ मृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरों स्वाहा।। ५।। (तैत्तिरीयोपनिषदाशयेनरचितः प९चमहायज्ञ.)
ओं यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते।
तया मामद्य मेधया ऽ ग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा।। ६।। (यजु.३२/१४)
ओं विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।
यद्भद्रन्तन्न ऽ आसुव स्वाहा।। ७।। (यजु.३०/३)
ओम् अग्ने नय सुपथा राये ऽ अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम ऽ उक्तिं विधेम स्वाहा।। ८।।
(यजु.४०/१६)

सायंकालीन-आहुतिमन्त्राः
ओम् अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा।। १।।
ओम् अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा।। २।।
ओम् अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा।। ३।।
इस मन्त्र को मन में बोल कर आहुति दें। (यजु. ३/९ के अनुसार)
ओं सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या।
जुषाणो ऽ अग्निर्वेतु स्वाहा।। ४।। (यजु.३/९, १०)
ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा।। १।।
(गोभिगृह्यसूत्र०प्र.१/खं.३/यू. १-३)
ओं भुवर्वायवे ऽ पानाय स्वाहा।। २।।
ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा।। ३।।
ओं भूर्भुवः स्वरग्निवायवादित्येभ्यः
प्राणापानव्यानेभ्यः स्वाहा।
(तैत्तिरीयोपनिषदाशयेनैकीकृता ऋ.भा.भू. पंचमहा.)
ओम् आपो ज्योतीरसो ऽ मृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरों स्वाहा।। ५।। (तैत्तिरीयोपनिषदाशयेनरचितः प९चमहायज्ञ.)

ओम् अग्नये स्वाहा।। १।।
ओम् अग्नीषोमाभ्यां स्वाहा।। १।।
ओम् विष्णवे स्वाहा।। १।।
इन तीन मन्त्रों से मिष्ठान्न की आहुति देने के पश्चात् निम्न चार व्याहृति मन्त्रों से घृत की आहुतियाँ देवे।
व्याहृत्याहुतिमन्त्राः
ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा।
इदमग्नये प्राणाय – इदन्न मम।। १।।
ओं भुवर्वायवे ऽ पानाय स्वाहा।
इदं वायवे ऽ पानाय – इदन्न मम ।। २।।
ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा।
इदमादित्याय व्यानाय – इदन्न मम।। ३।।

ओ३म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।। इस मन्त्र से तीन आहुतियां दें। (यजु.३६/३)

पूर्णाहुति मन्त्रः
ओं सर्वं वै पूर्ण ँ् स्वाहा। इस मन्त्र से तीन बार केवल घृत से आहुतियां देकर अग्नि होत्र को पूर्ण करें।

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