ईश्वर

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मंच पर आसीन आदरणीय महानुभावों एवं मान्यवर श्रोताओं तथा प्यारे मित्रों आज मैं आपको ईश्वर के विषय में जो ज्ञान मैंने इस शिविर में प्राप्त किया है उसकी थोड़ी जानकारी दूंगा..

ईश्वर एक है तथा उसी के अनेकों नाम हैं। ईश्वर का मुख्य नाम ‘ओ3म्’ है जिसका अर्थ है ईश्वर हम सब जीवों की सब ओर से सतत रक्षा करता है। ईश्वर के और भी अनगिनत नाम हैं। ईश्वर के अनेकों नाम उसके असंख्यात गुण, कर्म और स्वभाव के कारण से हैं। मैं समाज में प्रचलित ईश्वर के कुछ प्रसिद्ध नामों को आपको बताता हूँ.. सबसे बड़ा होने से ईश्वर ब्रह्म, संसार का रचयिता होने से ब्रह्मा, सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु, सबका कल्याणकर्ता होने से शिव, दुष्टों को दण्ड देकर रुलाने से रुद्र, सबका पालन करने से प्रजापति, ऐश्वर्यशाली एवं ऐश्वर्यदाता होने से ईश्वर को इन्द्र कहते हैं।

और ये हैं ईश्वर के वेदोक्त कुछ अप्रसिद्ध नाम और उनके अर्र्थ.. ज्ञानस्वरूप होने से ईश्वर अग्नि, चराचर जगत् के धारण-जीवन और प्रलय करने तथा सबसे अधिक बलवान होने से वायु, दुष्टों को दण्ड देने तथा अव्यक्त एवं परमाणुओं का संयोग वियोग करनेवाला होने से जल, विस्तृत जगत् का विस्तारकर्ता होने से पृथिवी, सब ओर से जगत का प्रकाशक होने से आकाश, ईश्वर का कभी विनाश नहीं होता इसीसे उसका नाम आदित्य, स्वप्रकाशस्वरूप सबके प्रकाश करने इसी प्रकार चराचर जगत के आत्मा होने से सूर्य, स्वयं आनन्दस्वरूप सबको आनन्द देनेवाला ईश्वर चन्द्र है। आप मंगलस्वरूप सबका मंगलकर्ता होने से ईश्वर मंगल, स्वयं बोधस्वरूप सभी जीवों के बोधका कारण ईश्वर बुध है। ईश्वर स्वयं अत्यन्त पवित्र और उसके संग से जीव भी पवित्र हो जाते हैं इससे वह शुक्र है।

इतना ही नहीं उसी ईश्वर को गणपति, नारायण, राहु, केतु, सरस्वती एवं लक्ष्मी आदि भी कहते हैं.. गिनने योग्य समस्त जड़ों और जीवों का स्वामी होने से ईश्वर गणपति है। जल और जीवों को नारा तथा अयन घर को कहते हैं, अर्थात् जल और जीवों के निवास का स्थान होने से ईश्वर नारायण है। राहु अर्थात् ईश्वर सदा एकान्तस्वरूप याने उसमें कभी कोई पदार्थ घुलता-मिलता नहीं तथा दुष्टों को छोड़ने और अन्यों से छुड़ानेवाला है। केतु अर्थात् सब जगत का निवासस्थान, स्वयं रोगरहित और अन्यों को रोगमुक्त कराता है। सरस्वती अर्थात् ईश्वर में समस्त प्रकार के शब्द अर्थ सम्बन्ध प्रयोग का पूर्ण ज्ञान है और लक्ष्मी अर्थात् ईश्वर सबको आकार-प्रकार दे शक्लें बनाता और चराचर जगत को देखता है।

इस प्रकार हमने जाना कि ईश्वर का कोई लिंग नहीं परन्तु उसके नाम तीनों लिंगों में वेदादि शास्त्रों में पाए जाते हैं। जैसे ब्रह्म नाम नपुंसकलिंग ईश्वर पुल्लिंग और देवी स्त्रीलिंग में आता है। ईश्वर कभी जन्म नहीं लेता, वह अजन्मा है। स्तुति, प्रार्थना, उपासना केवल ईश्वर की ही करनी चाहिए क्योंकि ईश्वर से अधिक सामर्थ्यशाली और कोई नहीं है, वही सर्वशक्तिमान् है।

ईश्वर के गुण कर्म एवं स्वभाव के विषय में अब आपको मैं बताता हूँ.. ईश्वर गुण हैं- अद्वितीय, सर्वशक्तिमान्, निराकार, सर्वव्यापक, अनादि, अनन्त आदि। ईश्वर के कर्म- जगत की उत्पत्ति पालन एवं विनाश करना तथा जीवों के कर्मों का फल देना एवं ईश्वर का स्वभाव अविनाशी, ज्ञानी, आनन्दी, शुद्ध, न्यायकारी, दयालु, अजन्मादि है। आप सभी महानुभावों ने मेरे विचारों को सुना इसलिए आपका हार्दिक धन्यवाद..!!

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