पूर्व को प्रकाश कैधों पृथ्वी पे प्रकट भयो।
कैधों उत्तरायण को तेज दीप आयो है।।
असत्य के सागर के सर्व-गर्व-गंजन को।
कैधों रघुनाथ आप चाप को चढ़ायो है।।
सारी वनराजी नए रंग में नचायबे को।
कैधों ऋतुराज आज छिति पे छवायो है।।
काराणी कहत नवयुग के जगायबे को।
कैधों आर्यत्व को पुनरुद्धारक आयो है।।२८।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई