विज्ञान भौतिकी विधि है आत्मा अभौतिकी है। अभौतिकी का विज्ञान तनिक अजीब सी बात है। यह भी अजीब सी बात है कि अभौतिकी आत्मा अपने सारे कार्य भौतिकी उपकरणों के माध्यम से ही करती है। अतः आत्मा के सारे सम्बन्ध भौतिकी ही हैं। इन सम्बन्धों के आधार पर आत्मा की खोज या पहचान आत्मा का विज्ञान है।
विज्ञान शब्द विषय वस्तु में नहीं पद्धति में निहित है। ‘‘वैज्ञानिक विधि’’ जिस विषय पर लागू करके उसकी खोज तथा निष्कर्ष निकाले जाते हैं वह उस विषय का विज्ञान है। आत्मा के विज्ञान को समझने के लिए दो चरणों की आवश्यकता है। प्रथम चरण में आत्मा का भौतिकी अहसास तत्त्व और दूसरा आत्मा की अनुभूत्यात्मक पहचान। आत्मा का भौतिकी अहसास विज्ञान के जटिलतम सूक्ष्मतम उपकरणों के प्रयोगों के निष्कर्षों से हो सकता है।
आत्मा के अहसास पूर्व का प्रश्न है आत्मा का स्थान.. शरीर में आत्मा का स्थान कहां है? शत शत संस्कृति प्रश्न है यह? उत्तर जितना सरल है उससे अधिक कठिन है। क्या विज्ञान के पास इस प्रश्न का उत्तर है? विज्ञान की इस विषय में खोजबीन की हम खोजबीन हम करें-
एल.ई.जे.ब्रौवेर ;ठतवनूमतद्ध ने १९२४ में एक सिद्धान्त दिया है जिसका नाम है- प्दजनपजपवदपेउ उस सिद्धान्त का सार है ‘‘मध्यपार का अस्वीकार नियम’’ ;त्मरमबजपवद वि जीम सूं व
ि जीम मगबसनकमक उपककसमद्ध इस सिद्धान्त का आधार तथ्य है वक्तव्य के नकार का अस्वीकार उसका स्वीकार है। यह सिद्धान्त गणित दर्शन का है। पर एक ब्रह्म सूत्र में इसका सटीक प्रयोग किया गया है। ‘‘इक्षतेनाशब्दम्’’ में ईक्षण नहीं होने से अशब्द हो जाते हैं का सीधा अर्थ है ईक्षण सीमा में ही शब्द होते हैं। आंख को किससे देख के बताओगे कि यह आंख है? आत्मा को अरे किससे अहसास कर बताओगे कि यह आत्मा है? आत्मा की ईक्षण सीमा क्या आत्मा हो सकती है? क्या यहां ईक्षण से शब्द सिद्ध हो सकता है? सहस्र संस्कृति प्रश्न है यह? उत्तर प्रतीक्षा चाहता है।
प्रश्न कहां उठते हैं? उत्तर कहां मिलते हैं? मूल गतिआधार क्या है? वर्तमान विज्ञान का उत्तर है मस्तिष्क में। क्या मस्तिष्क में आत्मा है? यदि है तो कहां आइए ढूंढ़े।
मस्तिष्क संरचना इन भागों से बनी है। (१) (Frontal), (२) (Temporal), (३) (Retina), (४) (Parital), (५) (Occipital), (६) (Spinal Cord), (७) (Visual Cortex), (८) अणुमस्तिष्क (Cerebellum), (९) (Corpus callosum), (१०) (Thalamus), (११) (Hypothalamus upper brain stem), (१२) (Hypo Campus), (१३) (Cpons recticular formation), (१४) (Medulla recticular formation)।
हर कोषिका मरती जीती है.. मस्तिष्क तथा हृदय कोषिकाएं मूलतः निर्मित होने पर मरती मरती हैं जीती नहीं। स्थाई उम्राधार हैं मस्तिष्क कोषिकाएं या हृदय कोषिकाएं। हृदय क्षेत्र क्या आत्मा का शब्द ढूंढा जा सकता है? कोटि जीवन क्रमों का प्रश्न है यह? स्व-स्वास्थीकरण प्रक्रिया से मानव ने कुछ पक्षियों, पशुओं में वह केन्द्र ढूंढा जा चुका है जहां से अजस्र रक्तधार की मूल उत्पत्ति होती है। पशु पक्षियों में यह रीढ़ की हड्डी में मूलाधार तथा उससे ऊपर के स्थानों में रहता है। मनुष्य के स्व स्वास्थ्य का आधार है यह केन्द्र। मनुष्य में यह ढूंढा नहीं जा सका है। यह केन्द्र भौतिकी अनाहत केन्द्र है।
कोषिकाओं की ताउम्र जीने की संकल्पनानुसार मानव की आत्मा या तो हृदय में होनी चाहिए या मस्तिष्क में। मस्तिष्क में होने की खोज जो ऊपर दी जा चुकी है (कृपया शीघ्र प्रकाश्य ‘एकी चिकित्सा’ पढ़े ) निरर्थ ठहर चुकी है अतः इसे हृदय में ही होना चााहिए। कुछ सरल से अतिआत्म साधना तर्क इस प्रकार हैं-
१.आह्लाद की उछागता का अहसास बिन्दु है अनाहत। गद्गद् अवस्था का अहसास हृदय में होता है। २.काम का परम आह्लाद परितृप्ति सुख हृदय के करीब अनाहत केन्द्र पर ही अहसासित होता है। ३.अनाहत केन्द्र, स्व-स्वास्थ्य संस्थान से युजित है। स्व-स्वास्थ्य संस्थान सकारात्मकता से जुड़ा है.. इस अवस्था अनाहत केन्द्र हृदय स्थानीय पर सर्वाधिक गहन आह्लाद होता है। ४.आत्मा-परमात्मा का मिलन स्थल ‘अक्षर ब्रह्म’ स्थल है। ‘शब्द ब्रह्म’ शरीर में अपरा स्थल उद्भूत होता है। सारी शब्दमाला का आधार अक्षर है ‘अ’। ‘अ’ का उद्गम स्थल अनाहत केन्द्र हृदय में ही है। चिकित्सा विज्ञान जब ‘वाक्’ केन्द्र मस्तिष्क में आत्मा ढूंढ रहा था तो वह दिशा सही थी पर गति अधूरी थी। ‘‘अपरा, परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी, अभिव्यक्ता अव्यक्ता’’ वाक् स्तरों में वह मस्तिष्क केन्द्र पश्यन्ती- मध्यमा स्तर की बात है। ५.‘प्राणवायु’- ‘ओष’ जीवन का सशक्ततम आधार है। जीवन की सबसे महान घटना ‘पहली सांस’ है। पहली सांस ओष संयुक्ति फेफड़ों में होती है.. और पहली भ्रूण रक्त कोषिका जिसमें सर्वाधिक ओष पिपासा तथा ग्रहण क्षमता होती है अनाहत केन्द्र के निकटतम ही ओषजन से ओष ले रक्तिम होती है। अतः आत्मा को इसके निकटतम ही होना चााहिए। ६.प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान में उदान वायु आत्म प्रिय तथा समस्त वायुओं का आधार होती है। उदान वायु का प्रथम ग्रहण एवं अन्त्य निष्कासन फेफड़ों से ही होता है। अतः आत्मा को फेफड़ों में ही होना चाहिए। ७.हिचकी तथा छींक वे विक्षेप हैं जो सीधे स्व-स्वास्थ्य संस्थान से जुड़े हैं। छींक में शरीर की सर्वाधिक व्यवस्थाएं कार्य करती हैं। छींक का उद्गम स्थल हृदय के निकट ही है अतः आत्मा को हृदय के निकट ही होना चााहिए। ८.गुरुत्व रक्त अभिसंचरण नियम से शरीर के हर अंग का समुचित पोषण हृदय से ही होता है.. हृदय को सर्वाधिक सशक्त रखने के लिए आत्मा का इसके निकट स्थानी होना जरूरी है। ९.हृदय बदस्तूर चलता रहता है सतत कर्मशील है, सम कर्मशील है। कर्म आत्मा का सहज गुण है अतः आत्मा का स्थान यहीं होना चााहिए। १०.सहजतः भी बच्चों का हाथ ‘‘तुम कहां हो?’’ पूछने पर हृदय पर ही जाता है। ११.‘‘द्वि-मस्तिष्कों’’ का युजन स्थल इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है कि वह स्थल निकाल देने पर मानव का स्व जैवत्व संतुलन- निर्णय क्षमता अति कम हो जाती है। यह केन्द्र मस्तिष्क से भी अधिक महत्वपूर्ण है। १२.अति तीव्र दर्द की अनुभूति मस्तिष्क को नहीं हृदय को काटती है। अतः हृदय ही आत्मा का स्थल हो सकता है। १३.प्रज्ञा ढ़ांचा है मस्तिष्क का.. तरंगायित स्वरूप जिसकी कोषिकाएं अमर हैं जीवन भर। ऋतमय होती है प्रज्ञा, शृतमय होती है मेधा। प्रकृति नियम युक्त है प्रज्ञा, नैतिक नियम युक्त है मेधा। मेधा की स्थिति गहन अर्थ है अतः आत्मा का स्थान मेधा के निकट होना चाहिए, हृदय में होना चाहिए। १४.साधना में स्थान आत्मा का होना चाहिए। ‘मस्तिष्क स्थानीय’, ‘न स्थानीय’ तथा ‘हृदय स्थानीय’ होती हैं साधनाएं। मस्तिष्क स्थानीय साधनाएं तनाव पैदा करती हैं, न स्थानीय साधनाएं तनाव मुक्ति पैदा करती हैं तथा हृदय स्थानीय साधनाएं आनन्द आह्लाद पैदा करती हैं। स्पष्ट है आत्मा का स्थान हृदय अन्तस् में ही होना चाहिए। १५.सदियां प्रवहणित भारतीय धर्म वेद, उपनिषद, दर्शन, गीता आदि में गुहा हृदय मेधा में ही आत्मा का अस्तित्व परमात्मा मिलन स्थल माना सिद्ध किया गया है। इस प्रकार वर्तमान तथ्यों के आधार पर, वैज्ञानिकता के आधार पर, धर्म के आधार पर, साधनाओं के आधार पर, अति आह्लाद अति दर्द के आधार पर आत्मा का अस्तित्व हृत प्रदेश में ही सिद्ध होता है।
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)