“हमारी ही भूल”
अल्पकालीन जीवन, ब्रह्म पूरा भरा है।
हम ही ना पहचानें…(2) हमारी ही भूल।। टेक।।
जीया ना परहित हरपल हमनें।
रहें मगन हम खुद में।।
स्वहित त्यागें जो भी जग में।
ब्रह्म जीएं वो खुद में।। 1।।
सुख दुःख पहिए सांस के घोड़े।
तन रथ अद्भुत मिला है…(2)
कर्म स्नेहन स्वहित रास्ते।
आत्म तो अमर भया है।। 2।।