अध्ययन-अध्यापन

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मंच पर आसीन आदरणीय महानुभावों एवं मान्यवर श्रोताओं तथा प्यारे मित्रों आज मैं आपको अध्ययन-अध्यापन के विषय में जो ज्ञान मैंने इस शिविर में प्राप्त किया है उसकी जानकारी दूंगा.

विद्या, संस्कार, उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव से मनुष्य सुशोभित होता है न कि उत्तमोत्तम अलंकार या वस्त्राभूषणों से। श्रेष्ठ मनुष्य बनने के लिए विद्या प्राप्ति, अभिमान न होना तथा दूसरों का सहयोग इन बातों की नितान्त आवश्यकता है। विद्यालयों में पढ़ानेवाले अध्यापक पूर्ण विद्वान् व धार्मिक होने चाहिएं। वैदिक नियम के अनुसार शिक्षा व्यवस्था कुछ इस प्रकार होनी चाहिए- 1. विद्यालय नगर से दूर, शान्त, एकान्त स्थान में होने चाहिएं। 2. लड़के व लड़कियों के विद्यालय अलग-अलग होने चाहिएं। 3. विद्यार्थी का जीवन तपस्वी, संयमी होना चाहिए। 4. खाने-पीने रहन-सहन सम्बन्धी सभी विद्यार्थियों की सुविधाएँ एक समान होनी चाहिएं।

ओ3म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात्। यह गायत्री मंत्र है। इसका अर्थ सभी विद्यार्थियों को कण्ठस्थ आना चाहिए.. इस का संक्षिप्त अर्थ इस प्रकार है- हे सम्पूर्ण जगत् के निर्माता, शुद्धस्वरुप, सकल दुःख हर्ता, समस्त सुखों को प्रदान करने वाले परमपिता परमेश्वर ! कृपा करके हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग में प्रेरित करें।

विद्यार्थी को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। स्नान करने से शरीर शुद्ध तथा स्वस्थ रहता है। जब कि मन की शुद्धि सत्य के आचरण से होती है। विद्यार्थी को नियमित रूप से प्राणायाम करना चाहिए.. प्राणायाम के ये लाभ हैं- 1. स्मृति शक्ति में वृद्धि, 2. मुक्ति पर्यन्त ज्ञान का बढ़ना, 3. रोग निवृत्ति एवं शारीर बल का बढ़ना, 4. सूक्ष्म बुद्धि की प्राप्ति, 5. एकाग्रता का होना, 6. अन्तःकरण की अशुद्धि का नाश आदि।

विद्यार्थी को ईश्वर का ध्यान प्रतिदिन प्रातः व सायंकाल करना चाहिए। ईश्वर का ध्यान करने से हमें सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है, बुद्धि तीव्र होने से आकलन-क्षमता तथा स्मरणशक्ति बढ़ती है, एकाग्रता बढ़ने से पढ़ाई में लाभ होता है। कुसंस्कारों का क्षय तथा सुसंस्कारों में वृद्धि होने से सद्गुणों में वृद्धि होकर दुर्गुणों का नाश होता है।

अन्न जल वायु की शुद्धि के लिए हमें प्रतिदिन हवन करना चाहिए। हवन करने से अनेक प्राणियों का उपकार, वायु-जल-अन्न की शुद्धि, रोगों का दूर होना इत्यादि अनेकों लाभ होते हैं।

विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य का पालन अध्ययनकाल में अवश्य करना चाहिए। इससे शारीरिक व मानसिक विकास, शुभ गुणों की प्राप्ति, दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ, कुशाग्र बुद्धि की प्राप्ति होती है। ब्रह्मचर्य तीन प्रकार का होता है- 1. वसु नामक कनिष्ठ ब्रह्मचर्य 24 वर्ष पर्यन्त, 2. रुद्र नामक मध्यम ब्रह्मचर्य 44 वर्ष पर्यन्त और 3. आदित्य नामक उत्तम ब्रह्मचर्य 48 वर्ष पर्यन्त।

यम पाँच प्रकार के होते हैं- 1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अस्तेय, 4. ब्रह्मचर्य, 5. अपरिग्रह। इसी प्रकार नियम भी पाँच प्रकार के होते हैं- 1. शौच, 2. सन्तोष, 3. तप, 4. स्वाध्याय, 5. ईश्वर प्रणिधान। विद्यार्थी को इनका मनसा वाचा कर्मणा पालन करना चाहिए। आयु, विद्या, यश और बल बढ़ाने के लिए माता-पिता, गुरु, वृद्धजनों की सेवा, आदर और उनकी आज्ञाओं का पालन अवश्य ही करना चाहिए।

अब विद्यार्थी को जिन कार्यों को नहीं करने चाहिएं उनकी चर्चा करते हैं.. 1. ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, झूठ बोलना। 2. अण्डे, मांस, मछली, शराब, गुटका, धूम्रपानादि अभक्ष्य का सेवन। 3. जुआ खेलना, 4. व्यभिचार आदि में वीर्यनाश करना, 5. आलस्य, प्रमाद एवं 4. दूसरों की हानि करना इत्यादि।

हमें सदा यह बात स्मरण रखनी चाहिए जो व्यक्ति विद्या प्राप्त कर धर्म का आचरण करता है वही सम्पूर्ण सुख को प्राप्त करता है। श्रेष्ठ कर्मों के आचरण को धर्म कहते हैं। धर्म का ज्ञान वेद, ऋषियों के ग्रन्थ, महापुरुषों के आचरण से होता है। तथा इन पांच बातों से सत्य-असत्य की परीक्षा की जाती है। सत्य वही होता है जो- 1. वेद के अनुकूल हो, 2. सृष्टि नियम से विपरीत न हो, 3. धार्मिक विद्वानों द्वारा कहा गया हो, 4. आत्मा के अनुकूल हो, 5. प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से जांचा गया हो। प्रमाण 8 प्रकार के होते हैं- 1. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान, 3. शब्द, 4. उपमान, 5. ऐतिह्य, 6. अर्थापत्ति, 7. सम्भव और 8. अभाव। उनमें से देखने, सुनने, गन्ध लेने, स्पर्श व स्वाद की अनुभूति से जो वास्तविक ज्ञान होता है, उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं।

विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान है। ऋषियों ने बताया है तत्त्वज्ञान विवेक वैराग्य समाधि आदि मोक्ष के साधन हैं। तत्त्वज्ञान के लिए व्याकरण से लेके वेद पर्यन्त उपनिषद दर्शन आदि आर्ष ग्रन्थों को पढ़ना होता है। सभी मनुष्यों को वेद पढ़ने का अधिकार है। देश की उन्नति के लिए 1. ब्रह्मचर्य, 2. विद्या और 3. धर्म का प्रचार आवश्यक है। इन्हीं बिन्दुओं साथ अध्ययन-अध्यापन के अपने विषय को मैं विराम दे रहा हूँ। मेरे विचार सुनने के लिए आप सभी श्रोता महानुभावों का धन्यवाद..!!

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