धर्म गयो धरणी में आगयो अधर्मयुग।
पाप परितापन में भारत बेजार था।।
तांत्रिकों का तन्त्र-मन्त्र वाममार्ग का विहार।
पूर्ण पोपलीला का प्रसार पारावार था।।
दुष्ट को न दण्ड था उद्दण्ड को घमण्ड था।
प्रचण्ड खण्ड-खण्ड में पाखण्ड का प्रचार था।।
वैर था विकार था धिक्कार भरा भारत में।
खड़ा द्वार-द्वार अविद्या का अन्धकार था।।१८।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई