मुमुक्ष्वो मनवे मानवस्येते। (ऋग्वेद 1/140/4)यज्ञ मानवोचित कर्म करनेवाले के लिए मुक्तिदायक है..!!
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यज्ञ की महिमा
मही यज्ञस्य रप्सुदा। (ऋग्वेद 18/72/12) यज्ञ की महान् उपयोगिता (महिमा) है।
प्रगति
जुहोत प्र च तिष्ठत (ऋग्वेद 1/15/1) तुम यज्ञ करो और प्रगति करो..!!