061 Paritya Bhutani January 1, 2020 By Arun Aryaveer Download मूल स्तुति प॒रीत्य॑ भू॒तानि॑ प॒रीत्य॑ लो॒कान् प॒रीत्य॒ सर्वाः॑ प्र॒दिशो॒ दिश॑श्च। उ॒प॒स्थाय॑ प्रथम॒जामृ॒तस्या॒त्मना॒त्मान॑म॒भि सं वि॑वेश॥१०॥यजु॰ ३२।११ व्याख्यान—सब भूत आकाश और प्रकृति से लेके पृथिवीपर्यन्त सब संसार में वह परमेश्वर व्याप्त होके पूर्ण भर रहा है तथा सब लोक, सब पूर्वादि दिशा और ऐशान्यादि उपदिशा, ऊपर-नीचे, अर्थात् एक कणका भी उनके विना रिक्त (खाली) नहीं है। “प्रथमजाम्” प्रथमोत्पन्न जीव सब संसार को ही समझना, सो जीवादि अपने आत्मा से अत्यन्त सत्याचरण, विद्या, श्रद्धा, भक्ति से “ऋतस्य” यथार्थ, सत्यस्वरूप परमात्मा को “उपस्थाय” यथावत् जानके, उपस्थित (निकट प्राप्त) “अभिसंविवेश” अभिमुख होके उसमें प्रविष्ट, अर्थात् परमानन्दस्वरूप परमात्मा में प्रवेश करके, सब दुःखों से छूटके सदैव उसी परमानन्द में रहता है॥१०॥