मूल स्तुति
पु॒रू॒तमं॑ पुरू॒णामीशा॑नं॒ वार्या॑णाम्।
इन्द्रं॒ सोमे॒ सचा॑ सु॒ते॥९॥ऋ॰ १।१।९।२
व्याख्यान—हे परात्पर परमात्मन्! आप “पुरूतमम्” अत्यन्तोत्तम और सर्वशत्रुविनाशक हो तथा बहुविध जगत् के पदार्थों के “ईशानम्” स्वामी और उत्पादक हो, “वार्य्याणाम्”, वर, वरणीय परमानन्दमोक्षादि पदार्थों के भी ईशान हो और “सोमे” उत्पत्तिस्थान संसार आपसे उत्पन्न होने से प्रीतिपूर्वक “इन्द्रम्” परमैश्वर्यवान् आपको (अभिप्रगायत*) हृदय में अत्यन्त प्रेम से गावें, यथावत् स्तुति करें, जिससे आपकी कृपा से हम लोगों का भी परमैश्वर्य बढ़ता जाय और हम परमानन्द को प्राप्त हों॥९॥
[* इस शब्द की अनुवृत्ति मन्त्र १.१.९.१ से आई है। (दयानन्द सरस्वती) ]