ओ3म् नारायणः April 12, 2020 By Arun Aryaveer Download “आत्म ब्रह्म में” ओ3म् नारायणः, ओ3म् खं ब्रह्म। ईशावास्यमिदं सर्वम्… (2)।। टेक।। सृष्टि यज्ञ सुरचना, संधि संधि अर्चना। समीपतम है हितकर, ब्रह्म ज्योतित है घर।। अग्निम् ईळे पुरोहितम्, यज्ञस्य देव मृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्, ईशावास्यमिदं सर्वम्।। 1।। ऊंचाइयों से उतरता, ब्रह्मानन्द बह रहा। पीले रे जीवात्मा, ब्रह्म है निर्झर।। उच्चाते जातमन्धसो दिविसद् भूम्यादधे। उग्रं शर्म महिश्रवः, इन्द्राय पातवे सुतः।। 2।। पवित्रता ते धारले, आप्तों से मांज के। अस्तित्वपूर्ण है चन्द्र, ईशावास्यमिदं सर्वम्।। इशे पवस्व धारया, मृज्जमानो मनीषिभिः। इन्दो रुचाभिः गाइहि, इन्दो रुचाभिः गाइहि।। 3।। आत्मा है ब्रह्म में तत्त्व है ब्रह्म में। प्रज्ञान ब्रह्म में ब्रह्म प्रणव स्वर है।। अयमात्मा ब्रह्म, असि त्वं तत्त्वम्। असि ब्रह्म प्रज्ञानम्, तस्य वाचकः प्रणवः।। 4।। तैरता सा दौड़ता, ब्र्रह्मानन्द बह रहा। तैरता सा दौड़ता, अस्तित्व है दौड़तर।। तरत् समन्दी धावति, धारा सुतस्यान्धसः। तरत् समन्दी धावति, ईशावास्यमिदं सर्वम्।। 5।। जग को है जो चला रहा, अचलायमान है स्वयम्। दूर से दूर तक, वही तो है निकटतम्।। लघु से लघुतम्, महत् से महत्तम्। विस्तार है ब्रह्म, ईशावास्यमिदं सर्वम्।। तदेजति तन्नैजति, तद् दूरे तदु अन्तिके। अणोरणीयानं, महतो महीयानम्।। 6।। दूसरा न तीसरा चौथा भी है नहीं। पांचवा न छठा सातवां भी है नहीं। आठवां न नौवां दशवां भी है नहीं। ग्यारहवां न सौवां करोड़वां भी है नहीं।। द्वितीयो न तृतीयो चतुर्थोपि न उच्यते। पंचमो न षष्ठो सप्तमोपि न उच्यते। अष्टो न नवमो दशमोपि न उच्यते।। प्रथमं हि प्रथमम्, ब्रह्म हि प्रथमम्। पहला हि पहला, ब्रह्म है पहला।। 7।।