पाठ : (१०) तृतीया विभक्ति (२)

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संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (१०) तृतीया विभक्ति (२)
{कर्मवाच्य (पॅसिव्ह व्हाइस) में कर्त्ता में तृतीया विभक्ति, कर्म में प्रथमा विभक्ति तथा क्रिया कर्म के अनुसार व आत्मनेपद में होती है।}

रामः ब्राह्मणग्रन्थान् पठति = राम ब्राह्मणग्रन्थ पढ़ता है।
रामेण ब्राह्मणग्रन्थाः पठ्यन्ते = राम के द्वारा ब्राह्मणग्रन्थ पढ़े जा रहे हैं।

वत्सला व्याकरणं पठतु = वत्सला व्याकरणं पढ़े।
वत्सलया व्याकरणं पठ्यताम् = वत्सला के द्वारा व्याकरण पढ़ा जाना चाहिए।

विद्या वेदं पठेत् = विद्या वेद पढ़े।
विद्यया वेदः पठ्येत = विद्या के द्वारा वेद पढ़ा जाए।

रमा रामायणम् अपठत् = रमा ने रामायण पढ़ी।
रमया रामायणम् अपठ्यत = रमा के द्वारा रामायण पढ़ी गई।

माधुरी महाभारतं पठिष्यति = माधुरी महाभारत पढ़ेगी।
माधुर्या महाभारतं पठिष्यते = माधुरी के द्वारा महाभारत पढ़ा जाएगा।

गौरी गीताम् अपाठीत् = गौरी ने गीता पढ़ी।
गौर्या गीता अपाठि = गौरी के द्वारा गीता पढ़ी गई।

गार्गी समग्रं वैदिकवाङ्मयं पपाठ = गार्गी ने समग्र वैदिक वाङ्मय को पढ़ा था।
गार्ग्या समग्रं वैदिकवाङ्मयं पपाठे = गार्गी के द्वारा समग्र वैदिक वाङ्मय पढ़ा गया था।

शृण्वन्तु धर्मसर्वस्वं सर्वे = सभी धर्म के सार को सुनें।
श्रूयतां र्ध्मसर्वस्वं सर्वैः = सब के द्वारा धर्म का सार सुना जाए।

विद्यार्थिन्यः आचार्यां सेविष्यन्ते = छात्राएं आचार्या की सेवा करेंगी।
विद्यार्थिनीभिः आचार्या सेविष्यते = छात्राओं के द्वारा आचार्या की सेवा की जाएगी।

विद्या किं किं न साधयति ? = विद्या क्या प्राप्त नहीं करवाती ?
विद्यया किं किं न साध्यते ? = विद्या के द्वारा क्या प्राप्त नहीं किया जाता ?

विद्या अस्मान् रक्षति = विद्या हमारी रक्षा करती है।
विद्यया वयं रक्ष्यामहे = विद्या के द्वारा हमारी रक्षा की जाती है।

दूरवाणी सर्वान् अहर्निशं सेवते = दूरवाणी सबकी दिन-रात सेवा करती है।
दूरवाण्या सर्वे अहर्निशं सेव्यन्ते = दूरवाणी के द्वारा सबकी दिन-रात सेवा की जा रही है।

विद्या लक्ष्मीं कीर्तिं च वितनोति = विद्या लक्ष्मी (धन) तथा कीर्ति का विस्तार करती है।
विद्यया लक्ष्मी कीर्तिः च वितन्यते = विद्या के द्वारा लक्ष्मी तथा कीर्ति का विस्तार किया जाता है।

वयं सदा धर्मं चरेयम् = हम सदा धर्म का आचरण करें।
अस्माभिः सदा धर्मः चर्येत = हमारे द्वारा सदा धर्म का आचरण होवे।

रोगाः दहन्ति देहम् = रोग शरीर को तपा रहे हैं।
रोगैः दह्यते देहः = रोगों के द्वारा काया तपायी जा रही है।

गावो विप्राश्च वेदाश्च सत्यः सत्यवादिनः अलुब्धाः दानशूराश्च सप्त धारयन्ति महीम् = गऊएं, विद्वान्, वेद, सती-स्त्रि सि्त्रयां, सत्यवादी लोग, अलोभी तथा दानवीर ये सात पृथ्वी को धारण करते हैं।
गोभिर्विप्रैश्च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः।
अलुब्धैर्दानशूरैश्च सप्तभिर्धार्यते मही।। = गाय, विद्वान्, वेद, सती स्त्रि सि्त्रयां, सत्यवादी जन, अलोभी, तथा दानवीर इन सातों के द्वारा पृथ्वी को धारण किया जा रहा है।

भुजङ्पयःपानं विषं वर्धयति = सर्प को दूध पिलाना जहर को बढ़ावा देना है।
भुजङ्पयःपानेन विषं वर्ध्यते = सांप को दूध पिलाया जाने से विष को बढ़ावा मिलता है।

कोऽपि आत्मानं न हन्ति = आत्मा को कोई भी नहीं मारता (मार सकता है)।
केनाऽपि आत्मा न हन्यते = किसी के भी द्वारा आत्मा नहीं मारा जाता (मारा नहीं जा सकता)।

नित्यम् अग्निहोत्रं जुहुयाद् अतन्द्रितः = आलस्य रहित होकर व्यक्ति को नित्य हवन करना चाहिए।
नित्यम् अग्निहोत्रं हूयेत अतन्द्रितेन = पुरुषार्थी (= अनालसी) के द्वारा नित्य ही हवन किया जाए।

क्षुधिताः बालाः मातरं पर्युपासते = भूखे बच्चे अपने मां के इर्द-गिर्द मंडराते हैं।
क्षुधितैः बालैः माता पर्युपास्यते = भूखे बच्चों के द्वारा माता के चक्कर काटा जाता है।

सर्वाणि भूतानि अग्निहोत्रम् उपास्यते = सब प्राणी अग्निहोत्र की उपासना करते हैं (= अर्थात् बिना अग्निहोत्र किसी भी प्राणी का गुजारा नहीं है)।
सर्वैः भूतैः अग्निहोत्रम् उपास्यते = सब प्राणियों के द्वारा अग्निहोत्र की उपासना की जाती है।

शिष्यः समित्पाणिः गुरुम् अभ्यागच्छेत् = शिष्य समर्पित भाव से गुरु के समीप जावे।
शिष्येण समित्पाणिना गुरुः अभ्यागम्येत = शिष्य के द्वारा समर्पित भाव से गुरु के समीप जाया जाना चाहिए।

आत्महनो जनाः अन्धन्तमः प्रविशन्ति = आत्मघाती लोग गहरे अन्धकार में प्रवेश करते हैं।
आत्महन्भिः जनैः अन्धन्तमः प्रविश्यते = आत्मघाती लोगों द्वारा गहरे अन्धकार में प्रवेश किया जाता है।

माता मथन्या मन्थं मन्थति = माता मथनी से मन्थ (मथा हुआ दही) को मथ रही है।
मात्रा मथन्या मन्थः मथ्यते = माता के द्वारा मथनी से मन्थ मथा जा रहा है।

खानकः खनित्रेण गर्तं खनति = खोदनेवाला फावड़े से गड्ढा खोद रहा है।
खानकेन खनित्रेण गर्तः खन्यते = खोदनवाले के द्वारा फावड़े से गड्ढा खोदा जा रहा है।

खनिता फाँकलेन यन्त्रेण खनिं खनिष्यति = खोदनेवाला बिजली यन्त्र से खान खोदेगा।
खनित्रा फाँकलेन यन्त्रेण खनिः खनिष्यते = खोदनेवाले के द्वारा बिजली यन्त्र से खान खोदी जाएगी।

बुभुक्षितैः व्याकरणं न भुज्यते, न पीयते काव्यरसः पिपासुभिः = भूखे लोगों से व्याकरण नहीं खाया जाता और न हि प्यासों से काव्यरस पीया जाता है।
केन ज्ञायते जनार्दनमनोवृत्तिः कदा कीदृशी ? = किससे यह जाना जा सकता है कि भगवान कब क्या करता है ?
श्रद्धया अग्निः समिध्यते, श्रद्धया हूयते हविः = श्रद्धा से संकल्पाग्नि जलाई जाती है, श्रद्धा से हविः = समर्पण किया जाता है।

त्वं दरिद्रान् प्रति दयां कुरु = तू कंगालों के प्रति दया कर।
त्वया दरिद्रान् प्रति दया क्रियताम् = तेरे द्वारा केगालों के प्रति दया की जानी चाहिए।

स मे समुन्नतिपथं सदैव प्रतिबध्नाति = वह मेरे उन्नतिपथ में सदा ही रोड़े अटकाता रहा है।
तेन मे समुन्नतिपथः सदैव प्रतिबध्यते = उसके द्वारा सदा मेरे उन्नतिपथ में बाधा डाली गई है।

तत् ब्रह्म केनापि द्वितीयः तृतीयः चतुर्थः पञ्चमः षष्ठः सप्तमः अष्टमः नवमः दशमःवा न उच्यते = वह ब्रह्म किसी के भी द्वारा दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवां, छठा, सातवां, आठवां, नौवां तथा दसवां नहीं कहा गया है।

प्रथमं हि प्रथमं तद् ब्रह्म सर्वैः उच्यते = सबसे पहला और अकेला वह ब्रह्म है ऐसा सभी के द्वारा कहा जा रहा है।

(कर्मवाच्य में द्विकर्मक धातुओं के प्रयोग)

गोपः गां दुग्धं (२/१) दोग्धि = गोपाल गाय का दूध दुहता है।
गोपेन गौः दुग्धं (२/१) दुह्यते = गोपाल के द्वारा गाय का दूध दुहा जा रहा है।
गोपेन गोः (५/१ अथवा ६/१) दुग्धं (१/१) दुह्यते = गोपाल के द्वारा गाय से / का दूध दुहा जा रहा है।

अपराधी नृपं क्षमां याचते = अपराधी राजा से क्षमा मांगता है।
अपराधिना नृपात् नृपस्य वा क्षमा याच्यते = अपराधी के द्वारा राजा से क्षमा मांगी जा रही है।

भिक्षुकः धनिकं भिक्षां भिक्षते = भिखारी सेठ से भीख मांग रहा है।
भिक्षुकेन धनिकात् धनिकस्य वा भिक्षा भिक्ष्यते = भिखारी के द्वारा सेठ से भीख मांगी जा रही है।

भ्रातृव्या माषान् वाष्पापूपान् पचति = भतीजी उड़द की इडली पका रही है।
भ्रातृव्यया माषेभ्यः माषाणां वा वाष्पापूपाः पच्यन्ते = भतीजी के द्वारा उड़द की इडली पकाई जा रही है।

नृपः दुर्जनं शतं दण्डयति = राजा दुष्ट को सौ रुपए का दण्ड देता है।
नृपेण दुर्जनः शतं (२/१) शतस्य वा दण्ड्यते = राजा के द्वारा दुष्ट को सौ रुपए का दण्ड दिया जा रहा है।
नृपेण दुर्जनं दुर्जनस्य वा शतं दण्ड्यते = राजा के द्वारा दुष्ट को सौ रुपए का दण्ड दिया जा रहा है।

अशोकः अजाम् अजिरम् अवरुणद्धि = अशोक बकरी को आंगन में रोकता है।
अशोकेन अजा अजिरम् अवरुध्यते = अशोक के द्वारा बकरी आंगन में रोकी जा रही है।

बालिका अध्यापिकां धर्मं पृच्छति = बच्ची अध्यापिका से धर्म के विषय में पूछ रही है।
बालिकया अध्यापिकायाः (५/१ अथवा ६/१) धर्मः पृच्छ्यते = बालिका के द्वारा अध्यापिका से धर्म के विषय में पूछा जा रहा है।
बालिकया अध्यापिका धर्मं धर्मस्य वा पृच्छ्यते = बालिका के द्वारा धर्म के विषय में अध्यापिका पूछी जा रही है।

लता लतां पुष्पाणि चिनोति = लता बेल से फूल चुन रही है।
लतया लतायाः (५/१ अथवा ६/१) पुष्पाणि चीयन्ते = लता के द्वारा बेल से / के फूल चुने जा रहे हैं।

पुत्रः पितरं सत्यं ब्रवीति = बेटा बाप को सच बताता है।
पुत्रेण पितुः (६/१) पितरं वा सत्यं (१/१) ब्रूयते = बेटे के द्वारा बाप को बताने के लिए सत्य बोला जा रहा है।

सुधीः साधकं साधनां शास्ति = विद्वान् साधक को साधना का उपदेश कर रहा है।
सुधिया साधकं साधकस्य वा साधना शिष्यते = विद्वान् के द्वारा साधक को साधना का उपदेश किया जा रहा है।
सुधिया साधकः साधनां साधनायाः वा शिष्यते = विद्वान् के द्वारा साधक को साधना का उपदेश किया जा रहा है।

श्यामः रामं शतं जयति = श्याम राम से सौ रुपए जीतता है।
श्यामेन रामात् रामस्य वा शतं जीयते = श्याम के द्वारा राम से सौ रुपए जीते जा रहे हैं।
श्यामेन रामः शतं शतस्य वा जीयते = श्याम के द्वारा सौ रुपए से राम जीता जा रहा है।

सुधीरः संसारसागरं सुधां मथ्नाति = सुधीर (=धीर व्यक्ति) संसार सागर से सुधा (=अमृत) को मथता है।
सुधीरेण संसारसागरात् संसारसागरस्य वा सुधा मथ्यते = सुधीर के द्वारा संसारसागर से अमृत मथा जा रहा है।
सुधीरेण संसारसागरः सुधां सुधायाः वा मथ्यते = सुधीर के द्वारा अमृत के लिए संसारसागर मथा जा रहा है।

मूषकः मा माषान् मुष्णाति = चूहा मेरे उड़द चुरा रहा है।
मूषकेन मत् मे मम वा माषाः मुष्यन्ते = चूहे के द्वारा मेरे उड़द चुराए जा रहे हैं।

व्याघ्रः व्याधं वनं नयति = शेर शिकारी को वन में ले जा रहा है।
व्याघ्रेण व्याधः वनं वनस्य वा नीयते = शेर के द्वारा शिकारी वन में ले जाया जा रहा है।
व्याघ्रेण व्याधं व्याधस्य वा वनं (१/१) नीयते = शेर के द्वारा शिकारी को वन ले जाया जा रहा है।

शाटिका शालिनीं हाटकं हरति = साड़ी शालिनी को दुकान पर ले जा रही है।
शाटिकया शालिनी हाटकं हाटकस्य वा ह्रियते = साड़ी के द्वारा शालिनी दुकान पर ले जायी जा रही है।

मधु मधुपं मधुशालां कर्षति = शराब शराबी को शराबखाने की ओर खींच रही है।
मधुना मधुपः मधुशालां मधुशालायाः वा कृष्यते = शराब के द्वारा शराबी शराबखाने की ओर खीचा जा रहा है।

बलिवर्दः काष्ठानि कानपुरं वहति = बैल लकड़ियां कानपुर तक ले जा रहा है।
बलिवर्देन काष्ठानि कानपुरं कानपुरस्य वा उह्यन्ते = बैल के द्वारा लकड़ियां कानपुर तक ले जायी जा रही हैं।

सुहृद् मित्रं धर्मं बोधयति = मित्र मित्र को धर्म का ज्ञान करा रहा है।
सुहृदा मित्रं धर्मः बोध्यते = मित्र के द्वारा मित्र को धर्म का ज्ञान कराया जा रहा है।

सुश्रवा सतीर्थ्यं श्लोकं श्रावयति = सुश्रवा (प्रशंसा प्राप्त) सहपाठी को श्लोक सुना रहा है।
सुश्रवसा सतीर्थ्यं श्लोकः श्राव्यते = सुश्रवा के द्वारा सहपाठी को श्लोक सुनाए जा रहे हैं।

भगिनी भ्रातरं भृष्टापूपं भोजयति = बहन भाई को टोस्ट खिला रही है।
भगिन्या भ्रातरं भृष्टापूपः भोज्यते = बहन के द्वारा भाई को टोस्ट खिलाया जा रहा है।

आभा आर्यां मातुलगृहं गमयति = आभा आर्या को मामा के घर भेज रही है।
आभया आर्या मातुलगृहं गम्यते = आभा के द्वारा आर्या मामा के घर भेजी जा रही है।

सुशीला शिशुं शाययति = सुशीला बच्चे को सुला रही है।
सुशीलया शिशुः शाय्यते = सुशीला के द्वारा बच्चे को सुलाया जा रहा है।

पाठयिता पठितारं पाठं पाठयति = पढ़ानेवाले पढ़नेवाले को पाठ पढ़ाता है।
पाठयित्रा पठिता पाठं पाठ्यते = पढ़ानेवाले के द्वारा पढ़नेवाले को पाठ पढ़ाया जा रहा है।

दिनेशः दीपकेन दीपं दीपयति = दिनेश दीप से दीप जला रहा है।
दिनेशेन दीपकेन दीपः दीप्यते = दिनेश के द्वारा दीप से दीप जलाया जा रहा है।

पितृष्वसा पाचकेन पक्ववटीं पाचयति = बुआ पाचकसे पकौड़ी पकवा रही है।
पितृष्वस्रा पाचकेन पक्ववटीं पाच्यते = बुआ के द्वारा पाचक से पकौड़ी पकवाई जा रही है।

रञ्जना रजक्या वस्त्रा स्त्राणि प्रक्षालयति = रंजना धोबन से कपड़े धुलवा रही है।
रञ्जनया रजक्या वस्त्रा स्त्राणि प्रक्षाल्यन्ते = रञ्जना के द्वारा धोबन से कपड़े धुलवाए जा रहे हैं।

यज्ञदत्तेन देवदत्तः विष्णुदत्तं ग्रामं गमयति = यज्ञदत्त की प्रेरणा से देवदत्त विष्णुदत्त को गांव भेजता है।
यज्ञदत्तेन देवदत्तेन विष्णुदत्तः ग्रामं गम्यते = यज्ञदत्त की प्रेरणा से देवदत्त के द्वारा विष्णुदत्त गांव भेजा जा रहा है।

प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कृपया त्रुटियों से अवगत कराते नए सुझाव अवश्य दें.. ‘‘आर्यवीर’’

अनुवादिका : आचार्या शीतल आर्या (पोकार) (आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन न्यास, रोजड, गुजरात, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति : ब्रह्मचारी अरुणकुमार ‘‘आर्यवीर’’ (आर्ष शोध संस्थान, अलियाबाद, तेलंगाणा, आर्यावर्त्त)

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