यथावत अर्थात स्तुति प्रबन्धन

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‘बुलबुला प्रबन्धन’, ‘ललो चप्पो प्रबन्धन’ है वर्तमान का भारतीय प्रबन्धन। बच्चे जो साबुन का बुलबुला फुलाते हैं देखते हैं साबुन तह के बदलते रंग; और खुश हो जाते हैं। फिर बुलबुला फूट जाता है। वर्तमान में औसतः भारतीय प्रबन्धन जिसे सकारात्मक प्रबन्धन का नाम दिया जाता है भी बुलबुला प्रबन्धन है।“- मैंनें सफर में चर्चा के दौरान एक महाप्रबन्धक से कहा। महाप्रबन्धक नें तीव्र प्रतिक्रिया करते एक प्रशिक्षण कथा सुनाई-

”एक बार परमात्मा नें दो अफसरों को संसार देखने के लिए भेजा। दोनों ने वापस आकर अपनी अपनी रिपोर्टें दी। पहला अफसर नकारात्मक था। एसने कहा संसार में हर कहीं बुरा ही बुरा है। दूसरा सकारात्मक था बोला संसार में हर कुछ अच्छा ही अच्छा है। यह सब नजर नजर की बात है। आपकी नजर नकारात्मक है।“ महाप्रबन्धक वर्तमान प्रबन्धन में सुप्रशिक्षित था।

”यह कथा अधूरी है“- मैंने कहा.. ”वास्तविक स्थिति कुछ और थी। परमात्मा कोई वर्तमान प्रबन्धक थोड़े ही था? असल में उसने तीन अफसर भेजे थे। तीसरे अफसर ने परमात्म ा को जो रिपोर्ट दी उसमें सही तसवीर थी। अर्थात अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा सत रज तम तीनों श्रेणियों में बांट कर कहा गया था।

प्रबन्धन के तीन प्रारूप हैं- एक सकारात्मक, दो सकारात्मक, तीन यथावत या स्तुतिपरक। वर्तमान में एक अतिप्रसिद्ध उदाहरण नकारात्मक तथा सकारात्मक का इस प्रकार है- एक गिलास में पानी है जो आधा भरा है। एक व्यक्ति उसे आधा खाली कहता है (नकारात्मक), दूसरा उसे आधा भरा कहता है (सकारात्मक)। दोनों यथार्थ सत्य या यथावत या स्तुतिपरक दृष्टिकोण से भटके टोपियों में सिर फिट करने की कोशिश कर रहे हैं यथार्थ दृष्टिकोण जो वेद परक है कि एक गिलास आधा भरा तथा आधा खाली है।

सकारात्मक प्रबन्धन पर ओलिवर गोल्डस्मिथ की प्रसिद्ध कहानी चित्रकार की है। एक चित्रकार ने अपने जीवन की श्रेष्ठ कलाकृति बनाई। उसे उसे बजार चौराहे पर रखकर टिप्पणी लिखी- इसमें खामियां दर्शाइए! शाम को चित्र देखा तो सारा चित्र (खामियों) दोषों के निषानों से भरा था। वह आत्महत्या करने चला। उसका मित्र मिला। उसने पूछा- ”क्यों उदास हो?“ चित्रकार नें सारी बात बताई। मित्र ने धीरज से कहा- ”एक चित्र और बनाओ“ चित्रकार बोला- ”वैसा श्रेष्ठ नहीं बनेगा“ मित्र ने कहा- ”जैसा भी बना सकते हो वैसा बनाओ“। चित्रकार ने बनाया। मित्र नें उसे उसी जगह बजार चौराहे पर रख दिया जहां पहला रखा था.. टिप्पणी लिखी- इस चित्र में खूबियां दर्शाइए। शाम को पूरा चित्र खूबियों के निशानों से भरा था। चित्रकार खुश हो गया।

उपरोक्त कहानी अर्धसत्य है। पूर्ण सत्य यह है- चित्रकार के तीसरे मित्र ने उससे कहा तीसरा चित्र बनाओ। तीसरे चित्र को भी उसी जगह इस टिप्पणी के साथ रख दिया गया कि इसमें अच्छाइयों को सही चिह्न से तथा गलतियों को कट्स चिह्न से दर्शाइए। शाम को चित्रकार को पता चल गया कि वह कितने पानी में है।

पहला तरीका नकारात्मक अधूरा है। दूसरा तरीका सकारात्मक अधूरा है। तीसरा तरीका यथावत या स्तुतिपरक पूरा है। जो वस्तु जैसी है उसे वैसा ही कहना, समझना और उसका वैसा ही उपयोग करना स्तुति है या यथावत है। इस तथ्य पर आधारित प्रबन्धन यथार्थ प्रबन्धन है।

”सकारात्मक दृष्टिकोण मूर्खता“ ने बडे बडे भारतीय संस्थानों को विनाष के कगार पर लाकर खडा कर दिया है। मूलतः यह प्रजातन्त्र की उपज है। प्रसिद्ध उक्ति है- ”नेता की हां में होता है शायद और शायद का अर्थ होता है नहीं। नेता सकारात्मक होता है ‘नही’ बोलता ही नहीं।“ इसी नेता ने ‘नहीं’ द्वारा दूसरे पार्टियों के सत्यों को भी नकार दिया है। यह दुहरा घोर घातक है।

वर्तमान भारतीय प्रबन्धन को सकारात्मकता ने उच्च प्रबन्धन के मनमानी के क्षेत्र में ढकेल दिया है। इसमें विश्व श्रेष्ठ वैज्ञानिक कॉन्फिडेन्शियल रिपोर्ट व्यवस्था लागू है। पर सकारात्मक अवैज्ञानिकता की इस भावना ने कि मैं क्यों किसी को खराब लिखूं इसे तहस नहस कर सब व्यवस्था चौपट कर दी है। और ऊलजलूल प्रमोशनों के तथ्यों में ऊलजलूल प्रमोशनों से ऊलजलूल लोग व्यवस्थाधिपति हो गए परिणामतः सारा उद्योग जगत तहस नहस हो गया है, होता जा रहा है।

सकारात्मक व्यवस्था का निष्चित एक बुलबुला प्रभाव होता है। क्षणिक उफान इसमें होता है। यही वह भ्रम है जिसके भुलाते में लोग इसे श्रेष्ठ समझ लेते हैं। नजर से नमक शक्कर नहीं बनता चाहे कोई कितना भी शक्कर नजर से नमक को देखता रहे। नमक को नजर से नमक पहचान कर उसका नमकवत सुप्रयोग ही षक्कर दृष्टि है। नमक के सन्दर्भ में यह यथावत प्रबन्धन है।

विश्व में जिस जिस संस्थान में जिस जिस मात्रा में यथावत या स्तुति प्रबन्धन है वह वह संस्थान उतना उतना उन्नत है। मात्र भारत के पास यथावत प्रबन्धन की प्रामाणिक पुस्तक ”न्यायदर्शन“ सहज उपलब्ध है। इससे अपना भारत विश्वश्रेष्ठ हो सकता है।

स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)

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