जलसिञ्चनमन्त्राः
ओम् अदिते ऽ नुमन्यस्व।। 1।। इससे पूर्व में
ओम् अनुमते ऽ नुमन्यस्व।। 2।। इससे पश्चिम में
ओम् सरस्वत्यनुमन्यस्व।। 3।। इससे उत्तर दिशा में
ओं देव सवितः प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय। दिव्यो गन्धर्वः केतपूः केतं नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु।। 4।। (यजु.अ. 30/मं. 1)