48. तन्त्वा समिद्भिरङ्गिरो १..!!

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तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्द्धयामसि।

बृहच्छोचा यविष्ठ्या स्वाहा।।

इदमग्नये ऽ ङ्गिरसे – इदन्न मम।। 4।। (यजु. 3/3.)

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