भारत गौरव गान या भारत चालीसा
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
12 – रामराज्य
जात-पात औ छुआछूत का था ना यंू मिथ्या अभिमान।
जैसा कर्म, वर्ण था वैसा, रहा देश में कर्म प्रधान।।
नीच कर्म से राक्षस कहलाता था, रावण ब्राह्मण जान।
ऊँच कर्म से भील वाल्मिकी कहलाता था ऋषि-विद्वान।।
भिल्नी, निषाध से शूद्रों को गले लगाये राम सुजान।
राम-कचहरी में धोबी तक दे सकता था अभय बयान।।
चोर, मूर्ख, खल, नास्तिक, वेश्यागण का न था नामोनिशान।
माँस, मीन, मदिरा क्रय-विक्रय की न कोई गन्दी दुकान।।
राम राज्य में भूखा, नंगा रहा न कोई इन्सान।
है भूमण्डल में भारत देश महान।।
है भूमण्डल में आर्यावर्त महान।।