मूल प्रार्थना
उप॑हूता इ॒ह गाव॒ उप॑हूता अजा॒वयः॑। अथो॒ऽअन्न॑स्य की॒लाल॒
उप॑हूतो गृ॒हेषु॑ नः। क्षेमा॑य वः॒ शान्त्यै॒ प्र प॑द्ये शि॒वꣳ श॒ग्मꣳ शं॒योःशं॒योः॥४९॥
यजु॰ ३।४३
व्याख्यान—हे पश्वादिपते! महात्मन्! आपकी ही कृपा से उत्तमउत्तम गाय, उपलक्षण से भैंस, घोड़े, हाथी, बकरी, भेड़ तथा अन्य सुखदायक सब पशु और अन्न, सर्वरोगनाशक ओषधियों का उत्कृष्ट रस “नः” हमारे घरों में नित्य स्थिर (प्राप्त) रख, जिससे किसी पदार्थ के विना हमको दुःख न हो। हे विद्वानो! “वः” (युष्माकम्) तुम्हारे सङ्ग और ईश्वर की कृपा से क्षेम, कुशलता और शान्ति तथा सर्वोपद्रव-विनाश के लिए “शिवम्” मोक्ष-सुख और इस संसार सुख को मैं प्राप्त होऊँ। मोक्ष-सुख और प्रजा-सुख इन दोनों की कामना करनेवाला जो मैं हूँ, उन मेरी उक्त दोनों कामनाओं को आप यथावत् शीघ्र पूरी कीजिए, आपका यही स्वभाव है कि अपने भक्तों की कामना अवश्य पूरी करना॥४९॥