मूल प्रार्थना
भूर्भुवः॒ स्वः सुप्र॒जाः प्र॒जाभिः॑ स्यासु॒वीरो॑ वी॒रैः सु॒पोषः॒ पोषैः।
नर्य॑ प्र॒जां मे॑ पाहि शस्य॑ प॒शून् मे॑ पा॒ह्यथ॑र्य पि॒तुं मे॑ पाहि॥३५॥
यजु॰ ३।३७
व्याख्यान—हे सर्वमङ्गलकारकेश्वर! आप “भूः” सदा वर्त्तमान हो “भुवः” वायु आदि पदार्थों के रचनेवाले “स्वः” सुखरूप लोक के रचनेवाले हो। हमको तीन लोक का सुख दीजिए। हे सर्वाध्यक्ष! आप कृपा करो, जिससे कि मैं पुत्र-पौत्रादि उत्तम गुणवाली प्रजा से श्रेष्ठ प्रजावाला होऊँ। सर्वोत्कृष्ट वीर योद्धाओं से युक्त “सुवीरः” युद्ध में सदा विजयी होऊँ। हे महापुष्टिप्रद! आपके अनुग्रह से अत्यन्त विद्यादि तथा सोम ओषधि, सुवर्णादि और नैरोग्यादि से सर्वपुष्टियुक्त होऊँ। हे “नर्य” नरों के हितकारक! मेरी प्रजा की रक्षा आप करो। हे “शंस्य” स्तुति करने योग्य ईश्वर! हस्त्यश्वादि पशुओं का आप पालन करो, हे “अथर्य” व्यापक ईश्वर! “पितुम्” मेरे अन्न की रक्षा करो। हे दयानिधे! हम लोगों को सब उत्तम पदार्थों से परिपूर्ण और सब दिन आप आनन्द में रक्खो॥३५॥