मूल प्रार्थना
द्यौः शान्ति॑र॒न्तरि॑क्ष॒ꣳ शान्तिः॑ पृथि॒वी शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोष॑धयः॒ शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑दे॒वाः शान्ति॒र्ब्रह्म॒ शान्तिः॒सर्व॒ꣳ शान्तिः॒ शान्ति॑रे॒व शान्तिः॒ सा मा॒ शान्ति॑रेधि॥२५॥ यजु॰ ३६।१७
व्याख्यान—हे सर्वदुःख की शान्ति करनेवाले! सब लोकों के ऊपर जो आकाश सो सर्वदा हम लोगों के लिए शान्त (निरुपद्रव) सुखकारक ही रहे, अन्तरिक्ष=मध्यस्थलोक और उसमें स्थित वायु आदि पदार्थ, पृथिवी, पृथिवीस्थ पदार्थ, जल, जलस्थ पदार्थ, ओषधि, तत्रस्थ गुण, वनस्प्ति, तत्रस्थ पदार्थ, विश्वेदेव जगत् के सब विद्वान् तथा विश्वद्योतक वेदमन्त्र, इन्द्रिय, सूर्यादि, उनकी किरण, तत्रस्थ गुण, ब्रह्म=परमात्मा तथा वेदशास्त्र, स्थूल और सूक्ष्म चराचर जगत् ये सब पदार्थ हमारे लिए हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन्! आपकी कृपा से शान्त (निरुपद्रव) सदानुकूल सुखदायक हों। मुझको भी वह शान्ति प्राप्त हो, जिससे मैं भी आपकी कृपा से शान्त, दुष्टक्रोधादि उपद्रवरहित होऊँ तथा सब संसारस्थ जीव भी दुष्टक्रोधादि उपद्रवरहित ही हों॥२५॥