मूल स्तुति
स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवेऽग्ने॑ सू॒पाय॒नो भ॑व।
सच॑स्वा नः स्व॒स्तये॑॥१५॥यजु॰ ३।२४
व्याख्यान—(ब्रह्म ह्यग्निः इत्यादि शतपथादिप्रामाण्याद् ब्रह्मैवात्राग्निर्ग्राह्यः) हे विज्ञानस्वरूपेश्वराग्ने! आप हमारे लिए “सूपायनः भव” सुख से प्राप्त, श्रेष्ठोपाय के प्रापक, अनुत्तम स्थान के दाता कृपा से सर्वदा हो तथा रक्षक भी हमारे आप ही हो। हे स्वस्तिदः परमात्मन्! सब दुःखों का नाश करके हमारे लिए सुख का वर्त्तमान सदैव कराओ, जिससे हमारा वर्त्तमान श्रेष्ठ ही हो। “स नः पितेव सूनवे” जैसे करुणामय पिता स्वपुत्र को सुखी ही रखता है, वैसे आप हमको सदा सुखी रक्खो, क्योंकि जो हम लोग बुरे होंगे तो उसकी शोभा आपको नहीं होना, किञ्च सन्तानों को सुधारने से ही पिता की बड़ाई होती है, अन्यथा नहीं॥१५॥