मूल स्तुति
तदे॒वाग्निस्तदा॑दि॒त्यस्तद्वा॒युस्तदु॑ च॒न्द्रमाः॑।
तदे॒व शु॒क्रं तद् ब्रह्म॒ ताऽआपः॒ स प्रजाप॑तिः॥४॥
व्याख्यान—जो सब जगत् का कारण एक परमेश्वर है, उसी का नाम अग्नि है (ब्रह्म ह्यग्निः *१ —शतपथे)—सर्वोत्तम, ज्ञानस्वरूप और जानने के योग्य, प्रापणीयस्वरूप और पूज्यतमेत्यादि अग्नि शब्द के अर्थ हैं “आदित्यो वै ब्रह्म, *२ वायुर्वै ब्रह्म, चन्द्रमा वै ब्रह्म, *३ शुक्रं हि ब्रह्म, सर्वजगत्कर्तृ ब्रह्म, ब्रह्म वै बृहत्, आपो वै ब्रह्मे *४ त्यादि” शतपथ तथा ऐतरेयब्राह्मण के प्रमाण हैं। “तदादित्यः” जिसका कभी नाश न हो और स्वप्रकाशस्वरूप हो, इससे परमात्मा का नाम आदित्य है। “तद्वायुः” सब जगत् का धारण करनेवाला, अनन्त बलवान्, प्राणों से भी जो प्रियस्वरूप है, इससे ईश्वर का नाम वायु है। पूर्वोक्त प्रमाण से “तदु चन्द्रमाः” जो आनन्दस्वरूप और स्वसेवकों को परमानन्द देनेवाला है, इससे पूर्वोक्त प्रकार से चन्द्रमा परमात्मा को जानना। “तदेव, शुक्रम्” वही चेतनस्वरूप ब्रह्म सब जगत् का कर्त्ता है, “तद् ब्रह्म” सो अनन्त, चेतन, सबसे बड़ा है और धर्मात्मा स्वभक्तों को अत्यन्त सुख, विद्यादि सद्गुणों से बढ़ानेवाला है। “ता आपः” उसी को सर्वज्ञ, चेतन, सर्वत्र व्याप्त होने से आपः नामक जानना। “सः प्रजापतिः” सो ही सब जगत् का पति (स्वामी) और पालन करनेवाला है, अन्य कोई नहीं, उसी को हम लोग इष्टदेव तथा पालक मानें, अन्य को नहीं॥४॥
[*१. शतपथ १.५.१.११॥*२. जैमिनीयोपनिषद् *३.४.९॥३. ऐतरेयब्राह्मण २.४१॥*४. आपो वै प्रजापतिः। शत॰ ८.२.३.१३॥]