045 Mrilaa No Rudrota

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मूल प्रार्थना

मृ॒ळा नो॑ रुद्रो॒त नो॒ मय॑स्कृधि क्ष॒यद्वी॑राय॒ नम॑सा विधेम ते।

यच्छं च॒ योश्च॒ मनु॑राये॒जे पि॒ता तद॑श्याम॒ तव॑ रुद्र॒ प्रणी॑तिषु॥४५॥ऋ॰ १।८।५।२

व्याख्यानहे दुष्टों को रुलानेहारे रुद्रेश्वर! “नः हमको “मृळ सुखी कर तथा “मयस्कृधि हमको मय, अर्थात् अत्यन्त सुख का सम्पादन कर। “क्षयद्वीराय, नमसा, विधेम, ते शत्रुओं के वीरों का क्षय करनेवाले आपको अत्यन्त नमस्कारादि से परिचर्या करनेवाले हम लोगों का रक्षण यथावत् कर। “यच्छम् हे रुद्र! आप हमारे पिता (जनक) और पालक हो, हमारी सब प्रजा को सुखी कर, “योश्च और प्रजा के रोगों का भी नाश कर। जैसे “मनुः मान्यकारक पिता “आयेजे स्वप्रजा को संगत और अनेकविध लाडन करता है, वैसे आप हमारा पालन करो। हे “रुद्र भगवन्! “तव, प्रणीतिषु आपकी आज्ञा का ‘प्रणय, अर्थात् उत्तम न्याययुक्त नीतियों में प्रवृत्त होके “तदश्याम वीरों के चक्रवर्ती राज्य को आपके अनुग्रह से प्राप्त हों॥४५॥

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