मूल प्रार्थना
त्वं हि वि॑श्वतोमुख वि॒श्वतः॑ परि॒भूरसि॑।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥३९॥ऋ॰ १।७।५।६
व्याख्यान—हे अग्ने परमात्मन्! “त्वं, हि” तू ही “विश्वतः परिभूरसि” सब जगत् सब ठिकानों में व्याप्त हो, अतएव आप विश्वतोमुख हो। हे सर्वतोमुख अग्ने! आप स्वमुख स्वशक्ति से सब जीवों के हृदय में सत्योपदेश नित्य ही कर रहे हो, वही आपका मुख है। हे कृपालो! “अप, नः शोशुचदघम्” आपकी इच्छा से हमारा पाप सब नष्ट हो जाय, जिससे हम लोग निष्पाप होके आपकी भक्ति और आज्ञा-पालन में नित्य तत्पर रहें॥३९॥