033 Jaatvedase Sunavaama

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मूल प्रार्थना

जा॒तवे॑दसे सुनवाम॒ सोम॑मरातीय॒तो नि द॑हाति॒ वेदः॑।

स नः॑ पर्ष॒दति॑ दु॒र्गाणि॒ विश्वा॒ ना॒वेव॒ सिन्धुं॑ दुरि॒तात्य॒ग्निः॥३३॥ऋ॰ १।७।७।१

व्याख्यानहे “जातवेदः परब्रह्मन्! आप जातवेद हो, उत्पन्नमात्र सब जगत् को जाननेवाले हो, सर्वत्र प्राप्त हो। जो विद्वानों से ज्ञात सबमें विद्यमान जात अर्थात् प्रादुर्भूत अनन्त धनवान् वा अनन्त ज्ञानवान् हो, इससे आपका नाम जातवेद है उन आपके लिए “वयम्, सोमं, सुनवाम जितने सोम प्रिय-गुणविशिष्टादि हमारे पदार्थ हैं, वे सब आपके ही लिये हैं, सो आप हे कृपालो! “अरातीयतः दुष्ट शत्रु जो हम धर्मात्माओं का विरोधी उसके “वेदः धनैश्वर्यादि का “निदहाति नित्य दहन करो, जिससे वह दुष्टता को छोड़के श्रेष्ठता को स्वीकार करे सो “नः” हमको “दुर्गाणि, विश्वा सम्पूर्ण दुस्सह दुःखों से “पर्षदति पार करके आप नित्य सुख को प्राप्त करो। “नावेव, सिन्धुम् जैसे अति कठिन नदी वा समुद्र से पार होने के लिए नौका होती है “दुरितात्यग्निः वैसे ही हमको सब पापजनित अत्यन्त पीड़ाओं से पृथक् (भिन्न) करके संसार में और मुक्ति में भी परमसुख को शीघ्र प्राप्त करो॥३३॥

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