मूल प्रार्थना
वै॒श्वा॒न॒रस्य॑ सुम॒तौ स्या॑म॒ राजा॒ हि कं॒ भुव॑नानामभि॒श्रीः।
इ॒तो जा॒तो विश्व॑मि॒दं वि च॑ष्टे वैश्वान॒रो य॑तते॒ सूर्ये॑ण॥३१॥ऋ॰ १।७।६।१
व्याख्यान—हे मनुष्यो! जो हमारा तथा सब जगत् का राजा सब भुवनों का स्वामी “कम्” सबका सुखदाता और “अभिश्रीः” सबका निधि (शोभा-कारक) है। “वैश्वानरो यतते सूर्येण” संसारस्थ सब नरों का नेता (नायक) और सूर्य के साथ वही प्रकाशक है, अर्थात् सब प्रकाशक पदार्थ उसके रचे हैं। “इतो जातो विश्वमिदं विचष्टे” इसी ईश्वर के सामर्थ्य से ही यह संसार उत्पन्न हुआ है, अर्थात् उसने रचा है। “वैश्वानरस्य सुमतौ, स्याम” उस वैश्वानर परमेश्वर की सुमति, अर्थात् सुशोभन (उत्कृष्ट) ज्ञान में हम निश्चित सुखस्वरूप और विज्ञानवाले हों। हे महाराजाधिराजेश्वर! आप इस हमारी आशा को कृपा से पूरी करो॥३१॥