मूल प्रार्थना
परा॑ णुदस्व मघवन्न॒मित्रान्त्सु॒वेदा॑ नो॒ वसू॑ कृधि।
अ॒स्माकं॑ बोध्यवि॒ता म॑हाध॒ने भवा॑ वृ॒धः सखी॑नाम्॥२४॥ऋ॰ ५।३।२१।५
व्याख्यान—हे “मघवन्” परमैश्वर्यवन्! इन्द्र! परमात्मन्! “अमित्रान्” हमारे सब शत्रुओं को “पराणुदस्व” परास्त कर दो। हे दातः! “सुवेदा, नो, वसू, कृधि” “अस्माकं बोध्यविता” हमारे लिए सब पृथिवी के धन सुलभ (सुख से प्राप्त) कर। “महाधने” युद्ध में हमारे और हमारे मित्र तथा सेनादि के “अविता” रक्षक “वृधः” वर्धक “भव” आप ही हो तथा “बोधि” हमको अपने ही जानो। हे भगवन्! जब आप ही हमारे योद्धारक्षक होंगे तभी हमारा सर्वत्र विजय होगा, इसमें सन्देह नहीं॥२४॥