मूल प्रार्थना
त्वं नः॑ सोम वि॒श्वतो॒ रक्षा॑ राजन्नघाय॒तः।
न रि॑ष्ये॒त् त्वाव॑तः॒ सखा॑॥२०॥ऋ॰ १।६।२०।३
व्याख्यान—हे सोम! राजन्नीश्वर! तुम “अघायतः” जो कोई प्राणी हममें पापी और पाप करने की इच्छा करनेवाले हों “विश्वतः” उन सब प्राणियों से हमारी “रक्ष” रक्षा करो, जिसके आप सगे मित्र हो “न, रिष्येत्” वह कभी विनष्ट नहीं होता, किन्तु हमको आपके सहाय से तिलमात्र भी दुःख वा भय कभी नहीं होगा, जो आपका मित्र और जिसके आप मित्र हो, उसको दुःख क्योंकर हो॥२०॥