मूल प्रार्थना
तमीशा॑नं॒ जग॑तस्त॒स्थुष॒स्पतिं॑ धियंजि॒न्वमव॑से हूमहे व॒यम्।
पू॒षा नो॒ यथा॒ वेद॑सा॒मस॑द् वृ॒धे र॑क्षि॒ता पा॒युरद॑ब्धः स्व॒स्तये॑॥१०॥ऋ॰ १।६।१५।५
व्याख्यान—हे सर्वाधिस्वामिन्! आप ही चर और अचर जगत् के “ईशानम्” रचनेवाले हो, “धियंजिन्वम्” सर्वविद्यामय, विज्ञानस्वरूप बुद्धि को प्रकाशित करनेवाले, सबको तृप्त करनेवाले प्रीणनीयस्वरूप “पूषा” सबके पोषक हो, उन आपका हम “नः, अवसे” अपनी रक्षा के लिए “हूमहे” आह्वान करते हैं। ‘यथा’ जिस प्रकार से आप हमारे विद्यादि धनों की वृद्धि वा रक्षा के लिए “अदब्धः रक्षिता” निरालस रक्षा करने में तत्पर हो, वैसे ही कृपा करके आप “स्वस्तये” हमारी स्वस्थता के लिए “पायुः” निरन्तर रक्षक (विनाशनिवारक) हो, आपसे पालित हम लोग सदैव उत्तम कामों में उन्नति और आनन्द को प्राप्त हों॥१०॥