तुम कर्मवीर तुम धर्मवीर, हो शूरवीर हे आर्यवीर।
तपज्ञानवीर श्रुतिमन्त्रधीर, हो तर्कवीर हे आर्यवीर।
अब क्रान्ति मचाओ हे आर्यवीर, सब भ्रान्ति भगाओ हे आर्यवीर।
हे आर्यवीर, हे आर्यवीर, हे आर्यवीर, हे आर्यवीर।। टेक।।
बीत रहा है समय सुहाना (3) गाओ नरजीवन का तराना (3)
कितने शुभ कर्मों से पाया, श्वासों का अनमोल खजाना (3)
तन-मन चमकाओ हे आर्यवीर, जीवन को बनाओ हे आर्यवीर।। 1।।
परहित परसेवा अपनाओ (3) दीन-दुःखी को गले लगाओ (3)
विद्या-धन-बल का ले सहारा, अभाव-अन्याय-अज्ञान मिटाओ(3)
सुखसाज सजाओ हे आर्यवीर, देश राग बजाओ हे आर्यवीर।। 2।।
सबके मन समरसता लाओ (3) फूट विषमता दूर भगाओ (3)
द्वेष-स्वार्थ तज परहित देखें, ऐसी वैदिक ज्योति जगाओ (3)
सद्भाव जगाओ हे आर्यवीर, जग सुखी बनाओ हे आर्यवीर।। 3।।
प्राणीजगत् से वैर मिटाओ (3) फिर से जगत् को आर्य बनाओ (3)
दयानन्द की विधि अपनाकर, राम-कृष्ण का कार्य कराओ (3)
वेदध्वनि गुँजाओ हे आर्यवीर, ओ3म् ध्वज फहराओ हे आर्यवीर।। 4।।
दूर करो विश्वास ये अन्धा (3) दो निर्बल असहाय को कन्धा (3)
कर्म करो कर्त्तव्य-भाव से, होवे ना कोई गोरख धंधा (3)
संध्या-यज्ञ रचाओ हे आर्यवीर, सामवेदी गूँजे ये स्वर गम्भीर।। 5।।