श्लोक सूक्तियां

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कल्याण

शं नोऽस्तु शं द्विपदे शं चतुष्पदे = हमारे लिए आप कल्याणकारी होवें, दो पैरवाले और चार पैरवाले अर्थात् प्राणिमात्र के लिए आप कल्याणकारी होवें।

विद्या

सा विद्या या विमुक्तये = वह विद्या कहाती है जो मुक्तिदायक होती है।

मनोकामना

यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु = जिस जिस कामनावाले होकर हम तुझे समर्पण करें, वह वह हमारी कामना पूर्ण होवे।

सुख-वर्षा

शंयोरभिस्रवन्तु नः = हमारे लिए लौकिक एवं मोक्ष दोनों प्रकार के सुखों की सभी ओर से वर्षा कीजिए।

भद्रम् आसुव

यद् भद्रं तन्न आसुव = जो कुछ भी कल्याणकारी है वह हमें प्राप्त कराइए।

वरुण मुझे मेधा प्रदान करे

मेधां मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः।
मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधां धाता ददातु मे।। = वरुण (अतिश्रेष्ठ परमात्मा) मुझे श्रेष्ठ बुद्धि प्रदान करे। ज्ञानस्वरूप परमात्मा मुझे ज्ञान ग्रहण करनेवाली बुद्धि प्रदान करे। परमैश्वर्यशाली एवं परम शक्तिशाली परमात्मा मुझे ऐश्वर्य व बल देनेवाली बुद्धि प्रदान करे। जगत् के धर्त्ता मुझे धारणावती बुद्धि प्रदान करे।

श्रद्धा

श्रद्धया अग्निः समिध्यते, श्रद्धया हूयते हविः = श्रद्धा से संकल्पाग्नि जलाई जाती है, श्रद्धा से हविः = समर्पण किया जाता है।

पृथ्वी को कौन धारण करते हैं

गावो विप्राश्च वेदाश्च सत्यः सत्यवादिनः अलुब्धाः दानशूराश्च सप्त धारयन्ति महीम् = गऊएं, विद्वान्, वेद, सती- स्त्रियां, सत्यवादी लोग, अलोभी तथा दानवीर ये सात पृथ्वी को धारण करते हैं।

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