“श्रेय – प्रेय” प्रबंधन

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“श्रेय – प्रेय” प्रबंधन धारणा कठोपनिषद से उपजी है । कठोपनिषद में श्रेय तथा प्रेय का विवेचन नचिकेता के संदर्भ में है । पूरे कठोननिषद में नचिकेता के प्रारंभ से अंतक तक श्रेय पथ का गमन किया।

श्रेय-प्रेय के समानांतर विचार धारा हेय – हान है । हेय – हान के चार चरण हैं । (1) हेय (2) हेय हेतु (3) हान (4) हानोपाय । हेय त्यागनीय का नाम है । हेय हेतु – त्यागनीय के कारण का नाम है । हान – पूर्णता का नाम है- हेय रहित पूर्णता । हानोपाय – पूर्णता पाने तथा कायम रखने का नाम है।

हेय नाम है त्रुटि का, नियम विरुद्धता का, नियम हीनता का । हेय का हेतु है: सरलता, प्रियता, आसानी, अज्ञान, तपहीनता, आदि । हान नाम है त्रुटि रहित पूर्णता का । होनोपाय है – श्रम, तप, सत्य, ऋत तथा श्रृत । हेय हेतु का निराकरण प्रेय से बचना है । हानोपाय – त्रुटि रहितता का अभिवरण है । वर्तमान में इसे त्रुटि विद्या कहा जाता है । यह नियम अध्यात्म क्षेत्र में लागू होता है । व्यवहार क्ष्ेात्र में इसके असंख्य उपयोग हैं ।

हेय दुःखद परिणाम प्रेय होता है । हान सुखद परिणाम श्रेय होता है । श्रेय गमन फिसलन वह दृत होता है । श्रेय गमन पर्वत चढ़ने वत कठिन होता है । फिसलने वाली धिसल पट्टी पर बचपन में हम धिसलने का सुख प्रेय पथ गुजरकर हजारों बार लेते रहे मुझे स्मरण है एक बार मैंने नया श्रेय पथ इजाद किया । धिसल पट्टी पर दौड़कर ऊपर चढ़ने का वह श्रेय आल्हाद समकक्षों में इने गिने ही प्रापत कर सके। मुझे वह आज में याद है । वह प्रेम पथ से हजारों गुना गुरू-तर है कि वह अति सप्रयास है । घोड़े पर पीछे बैठकर घूमकर आ जाना प्रेम पथ है पर घोड़े को स्वनियंत्रण में रख एड़ लगा दौड़ाना रोकना, मोड़ना, नियंत्रित करना श्रेय मार्ग है ।

“श्रेय – प्रेय” मार्ग के शास्त्रीय विवेचन से पूर्व श्रेय के दो भेद आवश्यक हैं । ”श्रेय“ भी श्रेष्ठ है तथा घटिया दोनों होता है । ऋत श्रृत दृढ़ता में तय पूर्वक चरैवन श्रेष्ठ श्रेय है । पर गिनीज बुक में रिकार्ड बनाने के लिए कीचड़ कूपन, अधिक , मूंछ बाल बढ़ावन, आदि बाद उल जूलूल कार्य तप पूर्वक करना घटिया श्रेय है । प्रेय का भी विभाजन संभव है । एष्ज्ञणानुसार इसके तीन भेद हैं । (1) वि-तेषण प्रेय (2) पु-तेषण प्रेय (3) यशेषण प्रेय – इनमें तृतीय उच्च है । श्रद्धा का आधार श्रेष्ठ श्रेय होता है । प्रेम का आधार प्रेय होता है । प्रेम – प्रबंधन बाधक होता है । श्रद्धा प्रबंधन सहायक होती है । नेता जिसके प्रति लोगों की श्रद्धा होती है उसका होना आवश्यक है ।

कर्मचारी तथा आम आदमी प्रेय प्रिय होता है । वह प्रिय कार्यों को तत्काल करता है पर श्रम साध्य कार्यों को टाल देता है । टाइपिस्ट छोटे पत्र पहले टाइप करते हैं । विद्यार्थी सरल प्रश्न पहले हल करते हैं। अधिकारी सरल पत्रों पर तत्काल हस्ताक्षर करता है । भोजन में सुस्वादु मनपसंद खाद्य पहले समाप्त होती है ।

”थर्टी सिक्स्थ चेम्बर ऑफ़ दी शाओलिन“ फिल्म में श्रेय – प्रेय प्रबंधन का सुन्दर चित्रण है । वहां प्रशिक्षणार्थियों को भोजन कक्ष में जाते समय पानी पर तेैरते गोल लट्टों पर भार दे लघु बहर कूदन पड़ता था । सह कूदना संतुलन अभ्यास द्वारा प्राप्त होता है यह श्रेय नियम था । एक नया विद्यार्थी बिना संतुलन अभ्यास पानी से कक्ष पहंुचने के प्रेय मार्ग पर चलता है उसे भोजन नहीं दिया जाता । वह भूखा सोता है । रात सपने में उसके पैर चलते हैं । वह जागता है । रात में अकेले वह श्रेय मार्ग पर चलता है । पहली बार पानी में गिरता है दूसरी तीसरी बार गिरता है हिम्मत नहीं हारता । एक बार सफल होता है । चेहरे पर नटय का आल्हाद झलकता है । दूसरी बार सफल होता है – नटय खुशी दुगुनी होती है दक्षता मानस में परिपक्क होती है और उस देर रात उसे वहीं ताली की आवाज सुनाई देती है जो उसके गुरु बजा रहे थे । वे गुरु पुरोहित थे – निकटतम रहकर अत्याधिक भला करने वाले थे ।

श्रेय मार्ग यत्न, अभ्यास, श्रम, तय, नियम, ऋत, श्रृत की उच्च कोटि की लगन की उपेक्षा रखता है। इस उपेक्षा पर खरा न उतरने वाले श्रयम पर नहीं चल सकते हैं ।

नचिकेता ने श्रेय प्रश्न पूछा । यमराज ने प्रेय ढेर प्रास्तावित किये । वृहत भूखंड, हीरे मोती, आभूषण, पुत्र पौत्रदि लेने के लिए कहा नचिकेता ने दो टूक उत्तर दिया वि-त से मनुष्य तृप्त नहीं होता – ये सब आज हैं कल नहीं प्रवृति के हैं । मुझे चाहिए आत्म ज्ञान जो आज भी हैं, कल भी तथा परसों भी रहेगा । नचिकेता श्रेय पथ का पथिक था । यम ने नचिकेता को ”श्रेय – प्रेय“ मार्ग विज्ञान समझाया । यह विज्ञान इस प्रकार है ।

श्रेय मार्ग
1) प्रशंसित कल्याण मार्ग ।
2) मोक्ष मार्ग ।
3) कर्म फल नियम।
4) कल्याण मय उत्तम ।
5) शास्त्र बुद्धि के अनुशीलन से शुद्ध बुद्धि चयनित ।
6) विश्लेषण पश्चात चयनित।
7) धीर विवेकी चयनित।
8) परोक्ष की सोच ।
9) वर्तमान कटु भविष्य अमृत ।
10) सहज उन्मुक्ति देते ।
11) त्रिएधणा अन्मुक्त ।
12) दिवस वत ।
13) यथार्थ ज्ञान रूप मार्ग ।
14) विद्या आधारित – नित्य, पवित्र, सुख, आत्मादि विवेकाधारित आत्मादि के अविवेकाधारित।
15) ज्ञान पूर्वक हर बार विवेक चयनित मार्ग गुण ।

प्रेय मार्ग
1) अतिशय प्रिय मार्ग।
2) मोक्ष भिन्न।
3) कर्म फल नियम।
4) परम लक्ष्य से भ्रष्टता।
5) भौतिक लालसा कारण चयनित ।
6) बिना विश्लेषण प्रियता धार चयनित ।
7) मंद बुद्धि चयनित।
8) वर्तमान की सोच।
9) वर्तमान मृदु भविष्य कटु।
10) सुंकाम श्रंखला = बेड़ी देते ।
11) त्रिएधणा युक्त।
12) रात्रि वत।
13) अज्ञान धंधला मार्ग।
14) अविधा – आधारित नित्य, पवित्र, सुख।
15) हर कहीं अंधों के पीछे अंधोवत चलने पर।

दोषाधारित खुद को आंख वाला समझते गति
प्रेय मार्ग गामियों की स्थिति का अति सटीक वर्णन जो वर्तमान के ”तत्काल प्रबंधन दक्ष“ अभियंताओं, नेताओं आदि पर सटीक लागू होता है इस प्रकार है:
”अविद्यामान्तरे वर्तमाना: स्वथन्धीशः पंडितम्मन्ययान्वाः दन्द्रभ्यभाणाः परिवन्ति मूढ़ा अन्से नैव नीयमाना यथा अंधा मार्गी – (1) विपरीत ज्ञान मटहर की फंसे (2) अपने आपको धीर बुद्धिमान मानते (3) बारम्बार कुटिल आचरण करते (4) कर्तव्य विवेक से रहित (5) अंध समूह में अंध समूहित हुए घूमते रहते हैं । इनके कुछ और गुण हैं । (6) वि-तमोहेन =एषणाग्रस्त (7) मोह ग्रस्त (7) बालक वत = लाली पायों लुभाते (9) अन्त अनभिज्ञ (10) परिपूर्णता समझ रहित होते हैं ।

श्रेय मार्गी इनके विपरीत (1) ज्ञान द्वारा उन्मुक्त हुए (2) स्वयं को अपने क्षेत्र यथावत ज्ञानी मानते – पंचीकरण समझ युक्त (3) कर्तव्य = अकर्तव्य समझते । (4) सदा सटीक आचरण करते । (5) समूह में श्रृताधारित स्व निर्णय पथ चलते । (6) एषणा उन्मुक्त (7) तटस्थ – जाति – निग्रह परे । (8) वानप्रस्थ वत (9) अन्त भिज्ञ (10) परिपूर्णता भिज्ञ होते हैं ।

प्रेय मार्ग से सावधान करते वर्तमान के कछ स्वर्णिम नियम प्रबंधन चिन्तकों की प्रेय मार्ग के प्रति चिन्ता अभिव्यक्त करते हैं ।

  1. अहसान प्रबंधन – राजनीतिक क्षेत्र में पहुंच रख ऊपर स्टाफ को अहसान लाद कार्य कराना अहसान प्रबध्ंान है ।
  2. डेलीमेशन प्रबंधन – सभी अंतर्मतों को बच्चों द्वारा क्रमशः कार्य सौंप कर व्यवस्था को अपाहिज करना डेलीमेशन इस व्यवस्था तथा बाबू सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं ।
    अहसान क्षेत्र व्यस्त अधिकारी डेलीमेशन भी अपनाता है ।
  3. स्वीनेय नियम: प्रगति रिपोर्ट की लम्बाई निष्पन्न कार्य ही व्युत्क्रमानुपाती होती है ।
  4. जैकब नियम: गलती मनुष्य की आदत है – गलती के लिए दूसरे के उत्तरदायी ठहराना बड़ी मनुष्य आदत है ।
  5. फेलसन नियम: एक व्यक्ति के विचार चुराना कापी राइट गुनाह है । कई लोगों के विचार चुराना शोध है ।
  6. ग्लाइम – सूत्र: सफलता का रहस्य इस निष्ठा में है कि आप यह झूठ साबित कर सकें कि आप निष्ठावान है ।
  7. मिथिलेश: नियम – लोग जो कठिन मेहनत का दावा करते हैं इस दावे के लिए ज्यादा मेहनत करते हैं ।
  8. कोचर नियम: अच्छा नेता कुछ बिन्दुओं पर निर्णय लेना तथा दूसरे बिन्दुओं पर उन्हें सिद्ध करना जानता है ।
  9. पूरी की पूरी पाश्चात्य व्यवस्था प्रेय प्रबंधन आधारित है । राजनीतिक व्यवस्था में सर्वोच्च प्रेय प्रधानमन्त्री पद होता है । प्रशासन में प्रेय सर्वोच्च वेयर मैन पद होता है । व्यापार क्षेत्र प्रेय लाभ होता है ।

प्रमोशन प्रेय व्यवस्था स्वतः घटिया होती है तथा श्योभाव होने के कारण क्रमशः और घटिया होती चली जाती है । इस स्थिति पाने में औसतः प्रेय प्राप्ति पर अक्षमता तथा संपृकतता हानिप्रद होती है और न पाने में हताशा तथा कार्यहीनता हानिप्रद होती है ।

भारतीय प्रशासन सिद्धान्त श्रेय आधारित है तथा तप साध्य होने के कारण लोगों के द्वारा अव्यवहारिक निरूपित करके त्याग पत्र दिये गये हैं । पर कई जगह पाकेटों में ये प्रेय प्रबंधन सिद्धांत आज भी लागू है । भारतीय संस्कृति श्रेय के लिए श्रेय पालन की निश्चित लाभप्रद व्यवस्था की समर्थक है । भारतीय संस्कृति की महाबाधाएं – श्रेय प्रबंधक आधारित ।

राम का पूरा पूरा जीवन श्रेय प्रबंधन की अमर गाथा है । जंगल भटकते अभाव ग्रस्त होने, सीता वियोग सहने, रावण छल दलित होने, सीता त्याग, अग्नि परीक्षा, लक्ष्मण मूर्च्छित होने, वाली युद्ध में, लंकार युद्ध में श्रेय पथ का त्याग नहीं मिला । इसी प्रकार कृष्ण ने अपने जीवन क्षेत्र जो महाभारत वर्जित है में कंस हत्या में, शिशुपाल वध में, कौरव पांडव महाभारत युद्ध में, द्वारका बसाने में अपने जीवन क्षेत्र में हमेशा श्रेय पथ का ही आलंबन किया । पांडवों का जीवन भी अपवाद को छोड़ पूरे समय – यक्ष प्रश्नोत्तर, शिक्षा, व्यवसाय, अज्ञात वास समय श्रेय पथ आलंबन आधारित ही रहा ।

अपवाद छोड़ नोबल पुरस्कार प्राप्त पुस्तकें गीतांजली, जांग जर्नी, ओल्ड मेन एण्ड सी, गुड अर्थ, डाक्टर आदि श्रेय पथ आधारित हैं । ”गोदान“ जैसे यथार्थवादी उपन्यास से होरी की आधारभूत मान्यता ”गोदान“ को अगर निकाल दिया जाये तो पूरा उपन्यास और उसका पूरा यथार्थवादी ढांचा भरभरककर रह जायेगा । ”गोदान“ का वह श्रेय है जिससे गोदान की सारी प्रक्रिया प्रकरी, पताका, चरम बिन्दु पिरोये गये हैं।

श्रेय प्रबंधन की आत्मा नित्य में नित्य, अनित्य में अनित्य, सटीक में सटीक, विचलन में विचलन, नियम में नियम, अनियम में अनियम, सुख में सुख, दुख में दुख, चैतन्य में चैतन्य, जड़ में जड़, विवेक में विवेक, अविवेक में अविवेक, कार्य मंे कार्य – अकार्य में अकार्य की स्वस्थतम धारणा पर आधारित होने के कारण ”संमद्रध्वम – समंद्रध्वम“ – कार्य समूह तथा वर्तमान की गुणवता संकल्पना को भी स्वयं में समेटे हुए हैं । गुणवता का तो ये स्वरूप ही है । श्रेय मार्ग गुणवता का कार्य समूह का मूलाआधार होने के साथ ही साथ शून्य त्रुटि का भी आधार होता है ।

महात्मा गांधी उद्योग प्रगति को लंगड़ी लड़की की कूद कहते हैं पर श्रेय मार्ग सतत अर्धकदम लम्बी कूद।

विश्व श्रेष्ठ होने के लिए भारत तथा भारतीयों के पास श्रेय पथारिक्त कोई भी पथ उपलब्ध नहीं है। आईए इस पर चल निकलें ।

स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)

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