अनूप शहरवाले शास्त्री हीरावल्लभ ने।
शास्त्रार्थ विवाद काज सभा को बुलाई है।।
सभा बीच रखी प्रतिमा को स्वयं महर्षि के।
हस्त से धराऊं भोग वही बात ठाई है।।
चले शास्त्रार्थ स्वामीजी के शब्दबाण चले।
वेद-धर्म की वहीं विजय दिखलाई है।।
पलटे पंडित वही आप आर्यवीर हुए।
वही मूरति को जाके गंगा में बहाई है।।३६।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई