रात चली जात ढली जात आंख भक्तन की।
नींद ना सोहात नैन में मूल शंकर को।।
शंकर के लिंग पे मचाई धूम मूषकों ने।
भेद कछु भयो ना शंकर को कंकर को।।
अक्षत चंदन पर चूहों ने चलाई चोट।
फेंक डाले सारे महादेव के मंदर को।।
शंकर को मूल देख कंकर के मूल मूल-
शंकर लगत मूल शोचन शंकर को।।४।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई