‘‘वेद सब सत्यविद्याओं की पुस्तक है’’ महर्षि दयानन्द जी के इस उद्घोष एवं ‘‘वेद का पढ़ना-पढ़ाना सुनना-सुनाना सभी आर्यों का परम धर्म है’’ इस प्रकार के स्पष्ट निर्देश के कारण ही जन्मना ब्राह्मणों तक परिसीमित वेदपाठ की परम्परा जन-सामान्य तक प्रचलित हो पाई। जहां एक ओर आर्य समाज द्वारा संचालित गुरुकुलों में यज्ञोपरान्त वेदपाठ की पावन परम्परा सर्वत्र देखी जा सकती है, वहीं अनेकों वेद-निष्ठावान् एवं स्वाध्यायशील आर्य महानुभाव अपनी दिनचर्या में वेदपाठ की परम्परा को अपने व्यक्तिगत या पारिवारिक स्तर पर अपनाए हुए हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में वेद के चुने हुए प्रसिद्ध सूक्तों एवं विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए किए जानेवाले यज्ञों में प्रयुक्त मन्त्रों के समुच्चयों का समावेश किया गया है। इसीलिए यह संग्रह गुरुकुलों, पुरोहितों, आचार्यों के साथ-साथ वेदपाठाभिलाषी जन-सामान्य के लिए भी उपादेय बन चुकी है।